आज के आर्टिकल में हम प्रदूषण (Pradushan) के बारे में बात करेंगे। इसके अन्तर्गत हम प्रदूषण क्या है (Pradushan Kya Hai), प्रदूषण किसे कहते है (Pradushan Kise Kahate Hain), प्रदूषण की परिभाषा (Pradushan Ki Paribhasha), प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं (Pradushan Kitne Prakar Ke Hote Hain) के बारे में जानेंगे।
प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं – Pradushan Kitne Prakar Ke Hote Hain
प्रदूषण क्या है – Pradushan Kya Hai
प्रदूषण (Pradushan) वह स्थिति है जब भौतिक, रासायनिक होने लगता है जिससे जीवन में प्रगति रुक जाती है तथा जीना दूभर होने लगता है। प्रदूषण (Pollution) एक वांछनीय एवं एक असामान्य स्थिति है। रासायनिक और जैविक परिवर्तनों के कारण हवा, जल और धरातल अपनी गुणवत्ता खो बैठते हैं तथा जीवधारियों के लिए पर्यावरण लाभकारी होने के बजाय हानिका
इस स्थिति में प्रदूषक तत्त्व सीमा से अधिक पर्यावरण के तत्त्वों में समाहित होकर उसकी गुणवत्ता को समाप्त करने लगते हैं। अतः जिस क्रिया से हवा, पानी, मिट्टी एवं वहाँ के संसाधनों के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में किसी अवांछनीय परिवर्तन से जैव जगत एवं सकल परिवेश पर हानिप्रद प्रभाव पहुँचे, उसे प्रदूषण (Pradushan) कहते हैं।
प्रदूषण किसे कहते हैं – Pollution Kise Kahate Hain
वायु-जल या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले ऐसे अनचाहे परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक हो, प्रदूषण (Pollution) कहलाते है।
प्रदूषण की परिभाषा – Pradushan Ki Paribhasha
ओडम के अनुसार, ’’हवा, पानी एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को किसी ऐसे अवांछनीय परिवर्तन से जिससे कि आदमी स्वयं को सकल परिवेश के प्राकृतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं।’’
डी. एम. डिक्सन के अनुसार, ’’प्रदूषण के अन्तर्गत मनुष्य एवं उसके पालतू मवेशियों के उन समस्त इच्छित एवं अनिच्छित कार्यों तथा उनसे उत्पन्न प्रभावों एवं परिणामों को सम्मिलित किया जाता है, जो मनुष्य को अपने पर्यावरण से आनन्द एवं पूर्ण लाभ प्राप्त करने की उसकी क्षमता को कम करते हैं।’’
लार्ड केनेट के अनुसार, ’’पर्यावरण में उन तत्त्वों या ऊर्जा की उपस्थिति को प्रदूषण कहते हैं जो मनुष्य द्वारा अनचाहे उत्पादित किये गये हों, जिनके उत्पादन का उद्देश्य अब समाप्त हो गया हो, जो अचानक बच निकले हों या जिनका मनुष्य के स्वास्थ्य पर अकथनीय हानिकारक प्रभाव पङता हो।’’
राष्ट्रीय पर्यावरण खोज परिषद के अनुसार, ’’मनुष्य के क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।’’
अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार, ’’प्रदूषण जल, वायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है। जिससे मनुष्य, अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं या सांस्कृतिक तत्त्वों तथा प्राकृतिक संसाधनों को कोई हानि हो या होने की संभावना हो। प्रदूषण में वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा वस्तुओं के प्रयोग करने के बाद फेंक देने की प्रवृत्ति और मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या के कारण आवश्यकताओं में वृद्धि है।’’
प्रदूषण के प्रकार – Pradushan Ke Prakar
- जल प्रदूषण (Jal Pradushan)
- वायु प्रदूषण (Vayu Pradushan)
- भूमि प्रदूषण (Bhumi Pradushan)
- ध्वनि प्रदूषण (Dhwani Pradushan)
जल प्रदूषण क्या है – Jal Pradushan Kya Hai

जल में आवश्यकता से अधिक खनिज लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ तथा औद्योगिक संयन्त्रों से निकले रासायनिक पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ तथा मृत जन्तु नदियों, झीलों, सागरों तथा अन्य जलीय क्षेत्रों में विसर्जित किये जाने से ये पदार्थ जल के प्राकृतिक व वास्तविक रूप को नष्ट करके उसे प्रदूषित कर देते हैं जिसका मनुष्य तथा अन्य जीवों पर घातक प्रभाव पङता है। इस प्रकार जल का दूषित होना जल प्रदूषण (Jal Pradushan ) कहलाता है।
जल प्रदूषण किसे कहते हैं – Jal Pradushan Kise Kahate Hain
मानव क्रियाकलापों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण (Water Pollution) कहते है।
जब झीलों, नहरों, नदियों, समुद्र तथा अन्य जल निकायों में विषैले पदार्थ प्रवेश करते हैं और यह इनमें घुल जाते है अथवा पानी में पङे रहते हैं या नीचे इकट्ठे हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जल प्रदूषित हो जाता है और इससे जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है तथा जलीय पारिस्थितिकी प्रणाली प्रभावित होती है। प्रदूषकों को भूमि में रिसन भी हो सकता है जिसके कारण भूमि-जल भी प्रभावित होता है।
जल प्रदूषण के कारण – Jal Pradushan Ke Karan
प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –
- प्राकृतिक रूप से भी जल प्रदूषित होता रहता है।
- इस प्रदूषण का कारण जल में मिश्रित होने वाली विभिन्न गैस, मृदा, खनिज, ह्यूमस पदार्थ तथा जीव-जन्तुओं का मल-मूत्र आदि होते हैं।
- यह प्रदूषण मंद और कभी-कभी सामयिक होता है, जैसे वर्षा ऋतु में नदियों, तालाबों का जल मृदा के कणों के मिश्रण से अत्यधिक मटमैला हो जाता है।
- प्राकृतिक अशुद्धियाँ अति सूक्ष्म कणों में घुलित रूप में होती हैं।
- यह जैव अथवा अजैव, कार्बनिक अथवा अकार्बनिक, रेडियोंयो-सक्रिय अथवा निष्क्रिय, विषैले अथवा हानि रहित हो सकती हैं।
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –
(1) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ – नगरों व महानगरों में अनेक उद्योग होते हैं जो कि सामान्यतया जल स्रोतों, यथा-झीलों, नदियों, सागरों इत्यादि के पास अम्ल, क्षार, तेल, वसा, विभिन्न रासायनिक लवण, खनिज धुलाई, चर्म शोधन, रंग रोगन, कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक, पारा, सीसा, उष्ण जल आदि को निकटवर्ती नदियों में बहाया जाता है जिससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। यही अपशिष्ट पदार्थ नदियों के माध्यम से झीलों, सागरों तथा महासागरों आदि में पहुँचते हैं तो वहाँ का जल प्रदूषित हो जाता है।
(2) घरेलू बहिस्राव – जल मनुष्य की आधारभूत जीवनदायी आवश्यकता है। जल स्नान करने, सफाई के लिए, भोजन पकाने व वातानुकूलित यंत्रों के काम में के रूप में स्थानीय क्षेत्रों से प्रवाहित कर दिया जाता है। इस जल में कपङे धोने से मिले अपमार्जक, सङी-गली सब्जियाँ एवं फल, चूल्हे की राख, घर का कूङा-करकट, कपङों के अंश आदि मिले रहते हैं। यह मलिन जल खुली नालियों से होकर निकटवर्ती जल स्रोतों से मिलकर प्रदूषण (Pollution) फैलता है।
(3) वाहित मल जल – नगरों का वाहित मल नदियों, झीलों, सागरों इत्यादि में पहुंचकर उसे प्रदूषित करता है। घरेलू गन्दा पानी, मानव का मलमूत्र, कूङा-कचरा आदि वाहित मल के स्रोत है। इस मलिन जल में बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, कवक इत्यादि सूक्ष्म जीव शीघ्रता से पैदा होते हैं तथा जल में जैविक संदूषण पैदा करते हैं।
जैसे – वाराणसी में लगभग 71 नालों द्वारा 15 मिलियन गैलन वाहित मल जल प्रतिदिन गंगा नदी में बहाया जा रहा है जिससे वहाँ का जल प्रदूषित हो गया है।
(4) अणु विस्फोट – अणु शक्ति से सम्पन्न देश परमाणु बमों का परीक्षण समुद्री द्वीपों में करते हैं जिससे समुद्री जल में विषैले पदार्थ मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं और अनेक जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में पङ जाता है।
जल प्रदूषण के प्रभाव – Jal Pradushan Ke Prabhav
जल प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –
- जब मनुष्य प्रदूषित जल का सेवन करता है तो उसमें उपस्थित जीवाणुओं से अनेक प्रकार की बीमारियाँ तथा हैजा, टाइफाइड, डायरिया, पेचिश आदि रोग फैल जाते हैं जो कि कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेते हैं। पीलिया, यकृत शोथ एवं पीलियो जैसी बीमारियाँ भी दूषित जल में उपस्थित वायरस से होती है।
- प्रदूषित जल का जलीय जीवों पर कई प्रकार से कुप्रभाव पङता है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जैव व अजैव पदार्थ भोजन शृंखला के द्वारा आपस में जुङे हुए रहते हैं तथा तंत्र की कार्यशीलता को बनाये रखते हैं। लेकिन उनमें अस्थिरता या असन्तुलन उत्पन्न होने पर कई प्रदूषण कुप्रभाव पङने लगते हैं।
- जल प्रदूषण जलीय वनस्पति को भी अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। ताप विद्युत गृहों अथवा धातु कारखानों से जो बहिःस्राव होता है वह जल में मिलकर उसके तापमान में वृद्धि कर देता है जिससे शैवालों व कवक में तीव्र वृद्धि होने लगती है।
- प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई करने पर मिट्टी की गुणवत्ता में ह्रास होता है, फसलें नष्ट हो जाती हैं तथा उसमें उत्पन्न खाद्य पदार्थ हानिकारक होते हैं। खारे पानी से सिंचाई के कारण मिट्टी में क्षारीय अंश बढ़ जाता है। बालुयुक्त जल से सिंचाई करने पर मिट्टी में बालू की मात्रा बढ़ जाती है।
जल प्रदूषण के उपाय – Jal Pradushan Ke Upay
जल प्रदूषण वर्तमान में एक विश्वव्यापी समस्या बना हुआ है। इसे विभिन्न निवारक उपायों द्वारा नियंत्रित करने के लिए जनसामान्य, सामाजिक संगठनों, राष्ट्रीय सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग आवश्यक है।
जल प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –
- उपचारित गन्दे जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है क्योंकि इसमें उर्वरकता होती है, विशेष रूप से सब्जियों के उत्पादन में इसे उपयोग में लिया जा सकता है।
- पेयजल स्रोतों के पास गन्दगी एकत्रित नहीं होनी चाहिए, उनके चारों तरफ पक्की दीवार बनाई जाये तथा उसमें नहाने तथा कपङे धोने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना चाहिए।
- उद्योगों के द्वारा वाहित प्रदूषित जल को जलस्रोतों में डालने पर रोक का कठोरता से पालन किया जाये। जो उद्योग प्रदूषित जल को जलस्रोतों में डालते हैं, उनके लिए जल उपचार संयंत्र लगाना जाना आवश्यक किया जाये और उपचारित जल ही नदी आदि में छोङा जाये।
- सरकारी स्तर पर जल के प्रदूषण की नियमित जाँच होनी चाहिए। उसका स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर क्या प्रभाव पङ रहा है इसका अध्ययन किया जाना चाहिए। साथ ही इस कार्य पर समुचित निगरानी करके नियमों का उल्लंघन करने वालों को कठोर सजा दी जानी चाहिए।
वायु प्रदूषण क्या है – Vayu Pradushan Kya Hai
वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात मेें होती हंै। जब वायु के अवयवों में अवांछित तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं तो उसका मौलिक सन्तुलन बिगङ जाता है जो मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए घातक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गैसें, कार्बन के कण, धुआँ, खनिजों के कण आदि सम्मिलित हैं।
वायु के दूषित होने की यही प्रक्रिया वायु प्रदूषण (Vayu Pradushan ) कहलाती है। इस प्रकार असन्तुलित वायु की गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है तथा वह जीवीय समुदाय के लिये सामान्य रूप में तथा मानव समुदाय के लिये विशेष रूप से हानिकारक होती है।
वायु प्रदूषण किसे कहते हैं – Vayu Pradushan Kise Kahate Hain
सामान्य अर्थों में प्राकृतिक तथा मानव-जनित स्रोतों से उत्पन्न बाहरी तत्त्वों के वायु में मिश्रण के कारण वायु की असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ’’वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थित है जिसमें बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्त्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते है।’’
वायु प्रदूषण के कारण – Vayu Pradushan Ke Karan
प्राकृतिक स्रोतों द्वारा वायु प्रदूषण के कारण –
- वायु प्रदूषण में प्राकृतिक स्रोत भी जिम्मेदार होते है।
- ज्वालामुखी उद्गार से उत्पन्न प्रदूषक- धूल-कण, राख, हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य गैंसे।
- अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की ऑक्साइड व अन्य गैसें, अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की ऑक्साइड व अन्य गैसें, अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की टक्कर से उत्पन्न धूल आदि,
- प्राथमिक उत्पादक हरे पौधों से वाष्पोत्सर्जन के दौरान निःसृत जलवाष्प व श्वसन द्वारा निर्मुक्त Co2 वनाग्नि से उत्पन्न गैसें व धुआँ, कवकों व बैक्टीरिया से उत्पन्न बीजाणु व वायरस आदि प्रमुख हैं।
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण के कारण –
- वर्तमान में मानवीय क्रिया-कलाप वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत बनते जा रहे हैं।
- कल-कारखानों से छोङा गया धुआँ एवं अनेक प्रकार के सूक्ष्म कण।
- आटोमोबाइल व डीजल ईंधन से निकाल धुआँ, गैस व धातुओं के सूक्ष्म कण।
- वायुयान व राकेटों का धुआँ।
- रासायनिक पदार्थ, पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकङी आदि का धुआँ।
- ताप विद्युत गृहों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड।
- खनिज तत्त्वों के कण।
- कृषि क्रियाओं में कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा।
- विभिन्न उद्योगों व तापगृहों से निकली जहरीली गैस, धूल कण आदि।
वायु प्रदूषण के प्रभाव – Vayu Pradushan Ke Prabhav
वायु प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –
- वायु प्रदूषण से वायुमंडलीय एवं स्थानीय तापमान में वृद्धि होती है, जिसका प्रभाव अनेक जलवायविक व मौसमी घटनाओं पर पङता है। अनेक उद्योगों से CFC एवं सुपरजेट विमानों से ’नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों’ का उत्सर्जन होता है, जिनके कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों का शोषण करने वाली ओजोन परत क्षीण हो रही है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सम्पूर्ण जीवमंडल पर पङेगा।
- वायु प्रदूषण के कारण मानव में दमा, श्वसनी शोध, गले का दर्द, निमोनिया जैसे हानिकारक रोग हो रहे है।
- वाहनों, उद्योगों जैसे कारकों से उत्सर्जित CO2 गैस से वायुमंडल की सांद्रता में वृद्धि हो रही है। फलस्वरूप हरित गृह प्रभाव बढ़ जायेगा, जिससे भूतल का तापमान बढ़ जायेगा, धु्रवों की बर्फ पिघल जायेगी, महासागरों का जल स्तर बढ़ जायेगा, तटवर्ती क्षेत्र जल में डूब जायेंगे तथा वनस्पतियाँ, मानव व जीव-जन्तु प्रभावित होंगे।
- वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा व धूम्र कोहरा जैसी विनाशक मौसमी घटनाएँ घट रही हैं, जिनका प्रभाव मानव के साथ-साथ जीव-जन्तु व वनस्पतियों पर भी पङ रहा है। अम्ल वर्षा के कारण मृदा उत्पादकता का भी ह्रास होता है।
वायु प्रदूषण के उपाय – Vayu Pradushan Ke Upay
वायु प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –
- उद्योगों की स्थापना घनी आबादी क्षेत्रों से दूर की जानी चाहिए। नवीन उद्योग स्थापित करने से पूर्व प्रदूषणकारी क्रियाविधियों के प्रबन्ध को ध्यान में रखा जाना चाहिए तथा निर्धारित मापदण्डों के अन्तर्गत ही इनका विकास किया जाए।
- सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत भाग में वनों को विकसित करके वायु प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग कम करना चाहिए अथवा उनकी वायु प्रदूषक उत्पन्न करने की क्षमता में कमी लाना चाहिये, जिससे कि वायुमंडल में SO2 एवं CO जैसी विषैली गैसों की मात्रा में वृद्धि न हो।
- वायु प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु कानून बनाना चाहिए एवं जनचेतना को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए।
भूमि प्रदूषण क्या है – Bhumi Pradushan Kya Hai
मिट्टी खनिज लवणों तथा अपघटित पदार्थों का समूह मात्र न होकर स्वयं में एक जटिल तंत्र है जो लम्बे समय में जलवायु, जीवों व अन्य भौतिक कारकों की अन्योन्याश्रित क्रियाओं से उत्पन्न होती है। लेकिन मानवीय हस्तक्षेप या प्राकृतिक प्रकोपों के परिणामस्वरूप भूमि में बाहरी तत्त्वों का समावेश हो जाने से भूमि प्रदूषण (Bhumi Pradushan ) उत्पन्न होता है।
भूमि प्रदूषण किसे कहते हैं – Bhumi Pradushan Kise Kahate Hain

सामान्यतः ’’भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पङे या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो, भूमि-प्रदूषण (Land Pollution) कहते है।
भूमि प्रदूषण के कारण – Bhumi Pradushan Ke Karan
भूमि प्रदूषण के निम्न कारण है –
- मनुष्य द्वारा वनों को काटकर साफ किया जा रहा है, जिससे मिट्टी के जैविकीय गुण समाप्त होते जा रहे है। मिट्टी में वनस्पति का मूल समाप्त होने के कारण भूमि का उपजाऊपन कम होता जा रहा है।
- वर्तमान समय में यंत्रीकृत प्रगति कृषि का आवश्यक अंग बन चुका है। यद्यपि रासायनिक उर्वरक फसलों के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं, लेकिन इनके अत्यधिक प्रयोग के कारण मिट्टियों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में भारी परिवर्तन हो जाते हैं। जिससे भी भूमि प्रदूषित होती है।
- औद्योगिक एवं नगरीय क्षेत्रों से निकले वाले अपशिष्ट पदार्थों के खेतों में डम्पिंग तथा नगरीय गन्दे नालों के प्रदूषित सीवरेज जल से फसलों की सिंचाई के कारण मिट्टियों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाने के कारण मिट्टियों का अवनयन शुरू हो जाता है।
- अम्ल वर्षा के कारण भूमि की उत्पादकता में कमी आ जाती है। धात्विक कणिकीय पदार्थों के कारण भी मिट्टियों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है।
भूमि प्रदूषण के प्रभाव – Bhumi Pradushan Ke Prabhav
भूमि प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –
- कीटाणुनाशक, शाकनाशक तथा कवकनाशक विषैली दवायें भूमि की उर्वरा शक्ति को कम कर देती हैं, जिससे फसलों की वृद्धि रुक जाती है।
- कीटनाशी डी.डी.टी. के उपयोग पर अनेक देशों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। ये रासायनिक प्रदूषक भोजन के साथ मानव शरीर में पहुँचकर अनेक रोग उत्पन्न करते हैं।
- रासायनिक उर्वरकों एवं जैव रसायनों के प्रयोग से मृदा की उर्वरता में क्षणिक वृद्धि होती है, परन्तु कालान्तर में मिट्टी के गुणों में ह्रास होता है। फलस्वरूप जा रही है।
- भूमि में लवणीकरण तथा पानी एकत्रित होने से कृषि भूमि नष्ट होती जा रही है।
भूमि प्रदूषण के उपाय – Bhumi Pradushan Ke Upay
भूमि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –
- रासायनिक उर्वरकों एवं जैव रसायनों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
- रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इनसे मिट्टी के मौलिक गुण कालान्तर तक विद्यमान रहेंगे।
- लवणता की अधिकता वाली मृदा के सुधार के लिए वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार रासायनिकों का प्रयोग किया जाए।
- वनाच्छादित क्षेत्रों में वन विनाश पर प्रतिबंध लगाया जाये। वन विकास जैसे परियोजनाओं को प्रारंभ किया जाये जिससे मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में गतिरोध पैदा न हो तथा भू-क्षरण भी नियंत्रित हो सके।
ध्वनि प्रदूषण क्या है – Dhwani Pradushan Kya Hai

ध्वनि प्रदूषण औद्योगीकरण, आधुनिक तकनीकीकरण तथा तकनीकी यातायात के साधनों के विकास से उत्पन्न समस्या है। जैसे-जैसे मानव जीवन में गतिशीलता बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। सामान्यतः ’’अनावश्यक, असुविधाजनक और निरर्थक आवाज ही ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) है।’’
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं – Dhwani Pradushan Kise Kahate Hain
डाॅ. वी राय के अनुसार, ’’अइच्छापूर्ण ध्वनि जो कि मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है अथवा प्रभावित करती है, ध्वनि प्रदूषण (Dhwani Pradushan ) है।’’
ध्वनि प्रदूषण के कारण – Dhwani Pradushan Ke Karan
प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण –
- इन कारणों में बादलों का गरजना एवं गङगङाहट।
- बिजली का कङकना।
- तूफानी हवाओं के विभिन्न रूप जैसे – हरिकेन, झंझावात, तङित झंझा, टारनेडो।
- उच्च तीव्रता वाली जल वर्षा।
- ओलावृष्टि, जल प्रपात।
- सागरीय सिर्फ तरंगें।
- ज्वालामुखी विस्फोट।
- भूकम्प।
यद्यपि इनका प्रभाव क्षेत्रीय एवं अल्पकालिक होता है, फिर भी ध्वनि प्रदूषण(Dhwani Pradushan) में इनकी भूमिका अहम होती है।
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण –
- मानवीय या कृत्रिम स्रोतों में मानव द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को शामिल किया जाता है।
- मानव जनित औद्योगीकरण एवं नगरीकरण से अनेक ध्वनि प्रदूषण कारकों का जन्म हुआ है।
- इसके अन्तर्गत सामान्यतः कल-कारखानों में कार्यरत मशीनों व यंत्रों से उत्पन्न शोर।
- यातायात के विभिन्न साधनों से उत्पन्न शोर, टीवी, रेडियो, वीडियो जैसे मनोरंजन के साधनों।
- अन्य ध्वनि प्रसारक यंत्रों से उत्पन्न शोर।
- मन्दिर-मस्जिदों व गुरुद्वारों में पूजा के समय, विवाहादि संस्कारों, भजन-कीर्तन आदि धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक समारोहों में लाउडस्पीकरों के उपयोग से उत्पन्न शोर।
- राजनैतिक गतिविधियों आदि विभिन्न कारणों से उत्पन्न शोर को शामिल किया जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव – Dhwani Pradushan Ke Prabhav
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –
- शोर से मस्तिष्क में तनाव की उत्पत्ति होती है तथा निरन्तर तनावग्रस्त रहने पर मानव में उच्च रक्तचाप व हृदय रोगों की उत्पत्ति होती है।
- 90 डेसीबल से अधिक ध्वनि वाले वातावरण में रहने वाले मनुष्यों में बहरापन, मानसिक तनाव, चिङचिङापन एवं हृदय रोगों में वृद्धि तथा सोचने की क्षमता में कमी आती है। तीव्र शोर से श्रवण शक्ति का ह्रास होता है।
- तीव्र ध्वनि से जीव-जन्तुओं के यकृत, हृदय एवं मस्तिष्क को भी हानि पहुँचती है।
- दीर्घकाल तक अधिक ध्वनि प्रदूषित क्षेत्रों में रहने से व्यक्ति में ’न्यूरोटिक मेण्टल डिसऑर्डर’ उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति विक्षिप्त अवस्था में पहुँच जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के उपाय – Dhwani Pradushan Ke Upay
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –
- औद्योगिक इकाइयों व ध्वनि उत्पन्न करने वाले कल-कारखानों को शहरी व ग्रामीण बस्तियों से दूर स्थापित करना चाहिये। उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को इयरप्लग तथा हैलमेट का उपयोग करना चाहिए।
- मोटरगाङियों व अन्य वाहनों में लगे तीव्र ध्वनि वाले हार्न को बजाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। मशीनों तथा वाहनों में साइलेन्सर का उपयोग किया जाना चाहिए।
- आग्नेय शस्त्रों व अन्य विस्फोटक पदार्थों के प्रयोग पर भी प्रतिबंध होना चाहिए। ध्वनि तरंगों के संचरण पथ को नियंत्रित करके भी ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- सङकों के दोनों किनारों पर आम, इमली, नारियल, नीम, ताङ, शीशम आदि के हरे वृक्षों की कतार खङी करके ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है क्योंकि हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 डेसीबल से 16 डेसीबल तक कम कर सकते हैं।
प्रदूषण को रोकने के उपाय – Pradushan Ko Rokne Ke Upay
प्रदूषण (Pollution) एक बङी पर्यावरणीय समस्या बनती जा रही है। जो ईश्वर रूपी प्रकृति व मानवीय जीवन को विनाश की खाई में दकेल रही है यदि इसके निवारण व नियंत्रण को नजरअंदाज किया तो यह समस्या मानव जीवन व अन्य प्राणियों के लिए एक बङा खतरा बन कर उभरेगी जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी शुद्ध भोजन, हवा, पानी आदि अनेक चीजों के लिए तरसेगी।
इसलिए हमें पर्यावरण संरक्षण की तरफ कदम बढ़ाने होंगे तथा हमें जन-मन में प्रदूषण नियंत्रण संबंधित जानकारी के प्रति जागरूकता फैलानी होगी। जब तब हमारे पूरे देश में लोग व सरकार प्रदूषण को रोकने के प्रति जिम्मेदारी नहीं होगे तब तक किसी भी प्रकार के प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता।
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