आज के आर्टिकल में हम महावीर स्वामी (Mahaveer Swami) की पूरी जानकारी पढ़ेंगे। इसमें हम महावीर स्वामी का जीवन परिचय (Mahaveer Swami Ka Jivan Parichay), महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति (Mahaveer Swami Ko Gyan Ki Prapti), जैन धर्म (jain dharm), जैन धर्म का प्रचार (Jain Dharm Ka Prachar), महावीर स्वामी के उपदेश (Bhagwan Mahaveer Ke Updesh) के बारे में जानेंगे।
महावीर स्वामी के बारे में पूरी जानकारी पढ़ें – Mahaveer Swami
महावीर स्वामी का जीवन परिचय – Mahaveer Swami Ka Jivan Parichay |
जन्म – 540 ई. पू., चैत्र शुक्ल त्रयोदशी |
जन्मस्थान – वैशाली के निकट कुण्डग्राम |
मृत्यु – 468 ई. पू. (72 वर्ष), कार्तिक अमावस्या |
मृत्युस्थान – पावापुरी (बिहार) |
बचपन का नाम – वर्धमान |
अन्य नाम – वीर, अतिवीर, सन्मति, निकंठनाथपुत्त (भगवान बुद्ध), विदेह, वैशालियें |
जाति – ज्ञातृक क्षत्रिय |
वंश – इक्ष्वाकु वंश |
राशि – कश्यप |
पिता – सिद्धार्थ |
माता – त्रिशला/विदेहदत्ता |
भाई – नंदीवर्धन |
बहन – सुदर्शना |
पत्नी – यशोदा (कुण्डिय गोत्र की कन्या) |
पुत्री – अणोज्जा/प्रियदर्शना |
दामाद – जामालि (प्रथम शिष्य – प्रथम विद्रोही) |
गृहत्याग – 30 वर्ष की आयु में |
ज्ञान प्राप्ति की अवस्था – 42 वर्ष (12 वर्ष बाद) |
ज्ञान प्राप्ति – जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे साल के वृक्ष के नीचे |
ज्ञान प्राप्ति के बाद इनके नाम – जिन, अर्हत, महावीर, निर्गन्थ, केवलिन। |
प्रथम उपदेश – राजगृह के समीप विपुलांचल पर्वत में बराकर नदी के किनारे |
प्रथम वर्षावास – अस्तिका ग्राम में |
अन्तिम वर्षावास – पावापुरी |
प्रतीक चिह्न – सिंह |
महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ – Mahaveer Swami Ka Janm Kab Hua Tha
महावीर स्वामी का जन्म 540 ई. पू. में में हुआ था। महावीर स्वामी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को सोमवार को सुबह जन्मे थे।
महावीर का जन्म कहां हुआ था – Mahaveer Swami Ka Janm Kahan Hua Tha
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुण्डग्राम के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
महावीर स्वामी का प्रारम्भिक जीवन – Biography of Mahavir Swami in Hindi
क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ इनके पिता थे, जो वैशाली गणराज्य (वज्जि संघ) के राजा थे। इनके पिता ज्ञातृक कुल के सरदार भी थे। माता का नाम त्रिशला/विदेहदत्ता था, जो वैशाली के लिच्छवी वंश के राजा चेटक की बहन थी। इनके पिता सिद्धार्थ इनके जन्म पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रजा को कई रियायतें भी थी जैसे – ऋण माफ, चुंगी कर माफ, राजस्व की दर में भी रियायतें दी थी।
साथ ही इनके जन्म पर इनके पिता सिद्धार्थ के राजकोष में काफी वृद्धि हुई, जिस कारण उन्हें ’वर्धमान’ (Vardhman) नाम दिया गया। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में इनके पाँच नाम मिलते है – वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति। महावीर स्वामी के बङे भाई का नाम नंदीवर्धन था। वर्धमान (Vardhman) को 5 वर्ष की आयु में गुरुकुल पढ़ने भेजा गया। वे संस्कृत के प्रकांड विद्यान थे लेकिन बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक विषयों के बारे में सोचते रहते थे।
महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ पार्श्वनाथ के शिष्य थे, इसलिए इनके पिता को ’निग्रन्थनाथ’ कहा जाता है तथा महावीर स्वामी को ’त्रिग्रन्थनाथपुत’ कहा जाता था।
महावीर स्वामी का विवाह – Mahaveer Swami Ka Vivah
- महावीर स्वामी (mahavira swami) की सांसारिक भोगों में कोई रुचि नहीं थी, वे विवाह नहीं करना चाहते थे।
- लेकिन उनके माता पिता उनके विवाह करना चाहते थे इसलिए उन्होंने उनकी इच्छा के अनुसार विवाह कर लिया था।
- श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी का विवाह कुण्डिय गोत्र के राजा समरवती की कन्या यशोदा के साथ हुआ था।
- यशोदा से जन्म लेने वाली पुत्री प्रियदर्शना तथा अणोज्जा थी। प्रियदर्शना का विवाह जामालि नामक क्षत्रिय से हुआ था।
महावीर स्वामी का गृहत्याग – Mahaveer Swami Ka Grah Tyag
अपने माता पिता की मृत्यु के बाद महावीर स्वामी के मन में वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, तब उन्होंने अपने बङे भाई नन्दीवर्धन से आज्ञा माँगी, लेकिन उनके भाई ने उनको 2 वर्ष रुकने के लिए कहा, इसलिए वे उनकी आज्ञा का मान रखते हुए 2 वर्ष रुके रहे। फिर महावीर स्वामी ने अपने भाई नंदीवर्धन से आज्ञा लेकर 30 वर्ष की आयु में वन में जाकर केशलोच के साथ उन्होंने गृहत्याग कर दिया।
गृहत्याग के बाद उन्होंने ’खंडवन’ नामक स्थान पर ’अशोक वृक्ष’ के नीचे अपने सारे राजस्वी वस्त्र त्याग दिये और संन्यासी के वस़्त्र धारण किये। जैन ग्रन्थ ’आचरांग सूत्र’ के अनुसार महावीर स्वामी सबसे पहले कुम्भहार गाँव में पहुँचे और वहीं पर तप शुरू किया। उन्होंने प्रारम्भिक 13 महीने तो वस्त्र धारण किये, उसके बाद ’स्वर्णवालूका नदी’ के किनारे वस्त्र त्याग दिये और नग्न अवस्था में रहने लगे। इन्हें दिगंबर कहा गया है जिसका अर्थ है – दिशाएँ ही जिसका वस्त्र हो।
लोगों ने उनका अपमान व अत्याचार किये और उन पर पत्थर भी फेंक गये। किन्तु उन्होंने कभी धैर्य नहीं छोङा। महावीर स्वामी नालंदा गये जहाँ उनकी भेंट मक्खलि पुत्र गोशाल नामक संन्यासी से हुई। जो बाद में इनके शिष्य बन गये। कोल्लाग के पास पणित भूमि नामक स्थान पर महावीर (Mahavira) और मक्खलि पुत्र गोशाल ने मिलकर कठोर तपस्या की, लेकिन बाद में दोनों में मतभेद हो जाता है। इसके बाद मक्खलि पुत्र गोशाल ने एक सम्प्रदाय की स्थापना की जो आगे चलकर आजीवक-संप्रदाय के नाम से विख्यात हुआ।
महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति – Mahaveer Swami Ko Gyan Ki Prapti
- 12 वर्ष तक कठोर तपस्या करने के बाद महावीर स्वामी को 42 वर्ष आयु में जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे साल के वृक्ष के नीचे कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
- इनकी कठोर तपस्या का वर्णन जैन साहित्य कल्पसूत्र और आचारांग सूत्र में मिलता है।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी के नाम –
- महावीर (Mahavira)
- जिन (विजेता)
- केवलिन (सर्वोच्च ज्ञान)
- निग्रन्थ (बन्धनरहित)
- अर्हं (योग्य)।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें एवं अंतिम तीर्थंकर हुए।
महावीर स्वामी का प्रथम उपदेश – Mahavir Swami Ka Pratham Updesh
उन्होंने अपना प्रथम उपदेश राजगृह के समीप विपुलांचल पहाङी पर वाराकर नदी के किनारे दिया और उन्होंने अपना प्रथम उपदेश बिम्बिसार, चेलना अजातशत्रु को दिया। महावीर स्वामी के प्रथम उपदेश को ’बिरशासन उदय’ कहा गया। इन्होंने अपना उपदेश मागधी या अर्द्ध-मागधी (प्राकृत) भाषा में दिया था। इनका प्रथम शिष्य जामालि था। इनके अनुयायियों को ’निर्ग्रन्थ’ (बंधनरहित) कहा जाता था।
Mahavira History
इनके धर्म प्रचारक 12 महीने में से 8 महीने पदयात्रा के माध्यम से अपने धर्म के सिद्धान्तों को लोगों तक पहुँचाते थे। बाकि 4 महीने ये एक जगह रुकते थे। तो उसे ’वर्षावास’ कहा जाता था। महावीर स्वामी ने प्रथम वर्षावास ’अस्तिकाग्राम’ (राजगृह) में बिताया था। उन्होंने अन्तिम वर्षावास पावापुरी में बिताया। सर्वाधिक वर्षावास राजगृह तथा वैशाली में बिताया। इनके प्रथम विद्रोही ’जामालि’ थे तथा दूसरे विद्रोही ’तीसगुप्त’ थे।
जैन भिक्षुणी संघ की स्थापना – Jain Bhikshuni Sangh Ki Sthapna
- चम्पा के शासक दधिवाहन भी इनके शिष्य बने और उनकी पुत्री ’चन्दना’ इनकी प्रथम शिष्या थी।
- महावीर स्वामी ने ’चन्दना’ को जैन धर्म में दीक्षित कर ’जैन भिक्षुणी संघ’ की स्थापना की।
जैन धर्म – Jain Dharm
जैन संघ की स्थापना किसने की – Jain Sangh in hindi
महावीर स्वामी (Lord Mahavira) ने पावापुरी में ’जैन संघ’ (Jain Sangh) की स्थापना की और इसके अध्यक्ष महावीर स्वामी बने। जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी (Mahavir Swami) थे। महावीर स्वामी ने जैन धर्म (Jainism) के सिद्धांतों को पूरे भारत में फैलाया।
जैन धर्म (Jainism) के सदस्य चार वर्गों में विभक्त थे – (1) भिक्षु, (2) भिक्षुणी, (3) श्रावक, (4) श्राविका। जैन धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने 11 गणधर नियुक्त किये। इनमें से 10 गणधरों की मृत्यु महावीर स्वामी के जीवनकाल में ही हो गई थी। महावीर स्वामी (Mahavir bhagwan) की मृत्यु के बाद जैन संघ (Jain Sangh) के अध्यक्ष ’सुधर्मण’ बने।
महावीर स्वामी के 11 गणधरों के नाम – Mahavir Swami Ke Gyarah Gandhar Ke Naam
- इंद्रभूति गौतम
- अग्निभूमि गौतम
- वायुभूमि गौतम
- मंडिकपुत्र वशिष्ठ मौर्य
- व्यक्त भारद्वाज कोल्लक
- सुधर्मण अग्निवेश्यायन कोल्लक
- भौमपुत्र कासव मौर्य
- अकंपित गौतम
- अचलभ्राता हिभाण
- मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक
- प्रभास कौंडिन्य।
जैन धर्म का प्रचार – Jain Dharm Ka Prachar
- महावीर स्वामी ने काशी, कोशल, मगध, अंग, वज्जि तथा मिथिला आदि प्रदेशों में घूमकर अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया। बिम्बिसार एवं अजातशत्रु महावीर स्वामी के अनुयायी बन गये। महावीर स्वामी के सैकङों लोग अनुयायी बन गए। राजा-महाराजा, व्यवसाय-व्यापारी तथा जन साधारण लोग उनके अनुयायी बन गए।
- मगध में बिम्बिसार एवं अजातशत्रु ने जैन धर्म को समर्थन दिया और ये महावीर स्वामी के अनुयायी थे। इसके साथ ही उदायिन भी ’जैन भिक्षु’ हो गया था। मगध के शिशुनागवंश के लिच्छवी शासक चेटक ने जैन धर्म को अपना राजधर्म घोषित किया। मगध के नन्द वंश के शूद्रोें ने जैन धर्म को समर्थन दिया।
- अंग नरेश दधिवाहन ने जैन धर्म (Jainism) का प्रचार-प्रसार किया।
- कौशाम्बी के राजा उदयन ने महावीर स्वामी की चंदन की लकङी की मूर्ति बनायी थी।
- मौर्य वंश के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में 12 वर्षों का अकाल पङा था, तब चन्द्रगुप्त मौर्य ने सभी विद्वानों की एक सभा बुलाई। कहा जाता है कि तभी एक जैन भिक्षु ने कहा कि ये आपके पूर्व में किये गये हिंसा के परिणाम है, अपने इस राज्य को निर्मित करने वाले के लिए जो हिंसा फैलायी है, उसी का यह फल है। तब जैन भिक्षु के कहने पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन भिक्षु के रूप में दक्षिण में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में सलेखना व्रत द्वारा अपने प्राण त्याग दिये। इस प्रकार जैन धर्म का प्रचार चन्द्रगुप्त मौर्य के माध्यम से भी दिखाई देता है। साथ ही चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रथम जैन संगीति भी हुई थी।
- कुषाण वंश में मथुरा में ’कंकाली टीला’ मिला है। यहाँ से भी जैन धर्म के प्रमाण प्राप्त होते है।
- कलिंग नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में जैन धर्म में मूर्ति पूजा का प्रमाण देता है। खारवेल ने इस अभिलेख में उल्लेख किया है कि नंद वंश के राजा कलिंग को जीतकर वो यहाँ से ’जिन’ (जैन धर्म से सम्बन्धित) की मूर्ति ले गया था।
- गुप्तकाल में राजा रामगुप्त का अभिलेख विदिशा के वेसनगर से मिला है जिसमें जैन मूर्तियों पाई गई है। जैन मूर्तियों के पूर्व भाग पर राजा रामगुप्त के बारे में अभिलेख निर्मित किए गए है। इससे यह पता चलता है कि राजा रामगुप्त जैन धर्म (Jainism) के समर्थक रहे होंगे।
- राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष जैन संन्यासी बन गया था। उसने ’रत्नमालिका’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
भगवान महावीर के उपदेश – Bhagwan Mahaveer Ke Updesh
महावीर स्वामी (Mahaveer Swami) ने इन पंचशील सिद्धातों को अपनाने वालों को सच्चा जैन अनुयायी कहा है।
1. अहिंसा – अपने मन, वचन तथा कर्म से हिंसा नहीं करनी चाहिए। जैन धर्म को मानने वाले सभी अनुयायियों के लिए अहिंसा को मानना अनिवार्य था। महावीर स्वामी का सबसे बङा सिद्धांत अहिंसा का है। इनके समस्त दर्शन, चरित्र तथा आचार-विचार सभी अहिंसा के सिद्धांत हैं। इन्होंने बताया कि – ’’अहिंसा ही परम धर्म है।’’ अहिंसा ही परम ब्रह्म है, अहिंसा ही सुख-शांति देने वाली है। यह मनुष्य का सच्चा कर्म है।
2. सत्य – महावीर स्वामी ने बताया कि मनुष्य को हमेशा सत्य वचन बोलना चाहिए। उनका कहना था कि सत्य वचन बोलने वाले व्यक्ति को ही मोक्ष तथा मुक्ति की प्राप्ति होती है, जो जीवन का सबसे बङा लक्ष्य है।
3. अस्तेय – भगवान महावीर ने बताया है कि व्यक्ति को कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए। चोरी करना एक पाप तथा अपराध है और कोई भी मनुष्य पापी तथा अपराधी बनकर मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर सकता है।
4. अपरिग्रह – महावीर स्वामी ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि यदि कोई व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति चाहता है, वह सदा के लिए ईश्वर में मिल जाना चाहता है, तो उसे अपने धन का संचय नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब तक हमारे पास धन रहता हैं, हमारी लालच तथा इच्छाओं का लोप नहीं होता हैं तथा लालची व्यक्ति को कभी भी मुक्ति नहीं मिलती है। उनका कहना था कि जितना धन हम स्वयं के लिए खर्च करते हैं, उससे हमारी इच्छाएं और प्रबल होती है, इसलिए धन का संचय न करें। सम्पत्ति से मोह व आसक्ति उत्पन्न होती है।
5. ब्रह्मचर्य – जैन भिक्षुओं को अपने जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पङता था। अपनी इन्द्रियों को वश में करना। ब्रह्मचर्य के अंतर्गत किसी नारी से वार्तालाप, उसे देखना, उससे संसर्ग का ध्यान करने की भी मनाही थी। इन पाँच व्रतों में ऊपर के चार पार्श्वनाथ ने दिये थे, जबकि पाँचवाँ व्रत ब्रह्मचर्य महावीर स्वामी ने जोङा।
इस प्रकार भगवान महावीर ने अपने ये सारे उपदेश दिए, जो जैन धर्म को मानने वाले सभी साधु, श्रविक, श्राविका, अनुयायी आदि सभी के लिए मानना तथा उसका पालन करना अनिवार्य था।
महावीर स्वामी की प्रमुख शिक्षाएं क्या थी – Mahaveer Swami Ki Shiksha
हर जीवित प्राणी के प्रति दया का भाव रखो।
प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वयं की गलतियों के कारण दुखी होते है, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते है।
आपका असली शत्रु आपके भीतर ही होता है और वह है क्रोध, घमंड, लालच और नफरत।
प्रत्येक आत्मा आनंदमय है आनंद बाहर से नहीं आता।
अपने शब्दों व कर्मों से दूसरों को चोट मत पहुँचाओ।
स्वयं से लङो, बाहरी दुश्मन से क्या लङना ? वह जो स्वयं पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।
जियो और जीने दो, किसी को दुःख मत दो क्योंकि सभी का जीवन उनके लिए प्रिय होता है।
जितना अधिक आप पाते हैं, इतना अधिक आप चाहते हैं, लाभ के साथ-साथ लालच बढ़ता जाता है, जो 2 ग्राम सोने से पूर्ण किया जा सकता है वो 10 लाख से नहीं किया जा सकता।
बाहरी त्याग अर्थहीन है यदि आत्मा आंतरिक बंधनों से जकङी रहती है। जैसे कि हर कोई जलती हुई आग से दूर रहता है, इसी प्रकार बुराइयों एक प्रबुद्ध व्यक्ति से दूर रहती है।
क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं।
केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतृप्त ना हो।
भगवान का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है, हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास करके देवत्व प्राप्त कर सकता है।
वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।
एक सच्चा इन्सान उतना ही विश्वसनीय है जितनी माँ, उतना ही आदरणीय है जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।
जीतने पर गर्व ना करें, ना हीं हारने पर दुःख।
महावीर स्वामी की मृत्यु कब हुई – Mahaveer Swami Ki Mrityu Kab Hui
- महावीर स्वामी की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में राजगृह के समीप पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण 14 दिपावली से एक दिन पहले हुई थी।
- महावीर स्वामी को राजा सृष्टिपाल के राजप्रासाद में निर्वाण प्राप्त हुआ।
- जैन समाज के अनुसार महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जयंती (Mahaveer Jayanti) के रूप में मनाया जाता है।
महावीर स्वामी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न – Mahavir Swami Questions and Answers
1. महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – 540 ई. पू., चैत्र शुक्ल त्रयोदशी
2. महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर – वैशाली के निकट कुण्डग्राम
3. महावीर स्वामी के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर – सिद्धार्थ
4. महावीर स्वामी की माता का नाम क्या था ?
उत्तर – त्रिशला/विदेहदत्ता
5. महावीर स्वामी के बचपन का नाम क्या था ?
उत्तर – वर्धमान
6. महावीर स्वामी के दामाद का नाम क्या था ?
उत्तर – जामालि
7. महावीर स्वामी के बङे भाई का नाम क्या था ?
उत्तर – नंदीवर्धन
8. महावीर स्वामी के अन्य नाम क्या थे ?
उत्तर – वीर, अतिवीर, सन्मति, निकंठनाथपुत्त (भगवान बुद्ध), विदेह, वैशालियें।
9. महावीर स्वामी का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर – श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी का विवाह कुण्डिय गोत्र के राजा समरवती की कन्या यशोदा के साथ हुआ था।
10. महावीर स्वामी की पुत्री कौन थी ?
उत्तर – अणोज्जा/प्रियदर्शना
11. प्रियदर्शना का विवाह किसके साथ हुआ था ?
उत्तर – जामालि नामक क्षत्रिय से
12. महावीर स्वामी ने कितने वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया ?
उत्तर – 30 वर्ष की आयु में
13. महावीर स्वामी ने किसकी आज्ञा से गृहत्याग किया ?
उत्तर – अपने भाई नंदीवर्धन की आज्ञा से
14. गृहत्याग के बाद महावीर स्वामी ने कहाँ अपने राजस्वी वस्त्रों का त्याग करके संन्यासी के वस़्त्र धारण किये ?
उत्तर – ’खंडवन’ नामक स्थान पर ’अशोक वृक्ष’ के नीचे
15. महावीर स्वामी ने कब और कहाँ अपने वस्त्र त्याग दिये थे ?
उत्तर – गृहत्याग के 13 महीने बाद ’स्वर्णवालूका नदी’ के किनारे
16. महावीर स्वामी की नालंदा में किससे भेंट हुई ?
उत्तर – नालंदा में उनकी भेंट मक्खलि पुत्र गोशाल नामक संन्यासी से हुई।
17. मक्खलि पुत्र गोशाल ने आगे चलकर किस संप्रदाय की स्थापना की ?
उत्तर – आजीवक संप्रदाय
18. कितने वर्ष की कठोर तपस्या के बाद महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई ?
उत्तर – 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद
19. महावीर को कितने वर्ष की अवस्था में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ?
उत्तर – 42 वर्ष
20. महावीर स्वामी को किस नदी के तट पर ज्ञान की प्राप्ति हुई ?
उत्तर – ऋजुपालिका नदी
21. महावीर स्वामी को किस वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई ?
उत्तर – साल के वृक्ष के नीचे
22. जैन धर्म में महावीर स्वामी के ज्ञान प्राप्ति को क्या कहा जाता है ?
उत्तर – कैवल्य
23. महावीर स्वामी के 12 वर्ष की कठोर तपस्या का वर्णन किस जैन साहित्य में मिलता है ?
उत्तर – जैन साहित्य कल्पसूत्र और आचारांग सूत्र में
24. ज्ञान प्राप्त के बाद वर्धमान को किस नामों से जाना गया ?
उत्तर – महावीर, जिन (विजेता), केवलिन (सर्वोच्च ज्ञान), निग्रन्थ (बन्धनरहित), अर्हं (योग्य)।
25. जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक के रूप में किसे जाना जाता है ?
उत्तर – महावीर स्वामी
26. जैन समुदाय के 24 वें तथा अंतिम तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर – महावीर स्वामी
27. महावीर स्वामी ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया ?
उत्तर – राजगृह के समीप विपुलांचल पहाङी पर वाराकर नदी के किनारे
28. महावीर स्वामी ने अपना प्रथम उपदेश किसे दिया ?
उत्तर – बिम्बिसार, चेलना
29. महावीर स्वामी के प्रथम उपदेश को जैन धर्म में क्या कहा जाता है ?
उत्तर – बिरशासन उदय
30. महावीर स्वामी नेे अपना उपदेश किस भाषा में दिया ?
उत्तर – मागधी या अर्द्धमागधी (प्राकृत) भाषा
31. महावीर स्वामी ने अपना प्रथम वर्षावास कहाँ पर बिताया ?
उत्तर – ’अस्तिकाग्राम’ (राजगृह) में
32. महावीर स्वामी ने अपना अन्तिम वर्षावास कहाँ बिताया ?
उत्तर – पावापुरी में
33. महावीर स्वामी ने कहाँ पर अपना सर्वाधिक वर्षावास में बिताया ?
उत्तर – राजगृह तथा वैशाली में
34. महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य कौन थे ?
उत्तर – जामालि
35. महावीर स्वामी के प्रथम व द्वि़तीय विद्रोही कौन थे ?
उत्तर – प्रथम विद्रोही – जामालि
दूसरे विद्रोही – तीसगुप्त
36. महावीर स्वामी ने किसकी अध्यक्षता में जैन भिक्षुणी संघ की स्थापना की ?
उत्तर – चन्दना
37. महावीर स्वामी ने जैन संघ की स्थापना कहाँ की ?
उत्तर – पावापुरी
38. महावीर स्वामी ने जैन धर्म के प्रचार के लिए कितने गणधरों की नियुक्ति की ?
उत्तर – 11 गणधर
39. महावीर स्वामी के अनुयायी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर – निर्ग्रन्थ
40. महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जैन संघ के अध्यक्ष कौन बने ?
उत्तर – ’सुधर्मण’
41. महावीर स्वामी ने पाँचवाँ कौनसा महाव्रत जोङा ?
उत्तर – ब्रह्मचर्य
42. महावीर स्वामी की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर – 468 ई. पू. में 72 वर्ष की अवस्था में
43. महावीर स्वामी की मृत्यु कहाँ हुई ?
उत्तर – राजगृह के समीप पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण 14 दिपावली से एक दिन पहले हुई थी।
44. महावीर स्वामी का प्रतीक चिह्न क्या था ?
उत्तर – सिंह
45. ’जियो और जीने दो’ किसने कहा था ?
उत्तर – महावीर स्वामी
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