आज के आर्टिकल में जहाँगीर (Jahangir) के बारे में पढ़ेंगे। इसके अन्तर्गत हम जहाँगीर का जीवन परिचय (Jahangir biography in hindi), जहाँगीर का इतिहास (Jahangir history in hindi), जहांगीर की विजयें (Jahangir ki vijay) आदि के बारे में जानेंगे।
जहाँगीर की पूरी जानकारी – Jahangir Biography in Hindi
जहाँगीर का जीवन परिचय – Jahangir Biography in Hindi | |
जन्म | 31 अगस्त, 1569 |
जन्मस्थान | फतेहपुर सीकरी, शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में |
मृत्यु | 28 अक्टूबर, 1627 |
मृत्युस्थान | राजोरी, कश्मीर |
उपनाम | नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर |
पिता | अकबर |
माता | मरियम बेगम |
राजवंश | मुगल |
धर्म | इस्लाम |
पत्नियाँ | मलिक जहां, शाह बेगम, खास महल, करमसी, सलिहा बानु बेगम, नूर-अन-निसा बेगम, खुसरो मिर्जा, खुर्रम मिर्जा, परविज मिर्जा, शाहरियर मिर्जा, जहांदर मिर्जा। |
बच्चे | इफत बानू बेगम, बहार बानू, बेगम, बेगम सुल्तान बेगम, सुल्तान-अन-निसा बेगम, अन-निसा बेगम। |
राज्याभिषेक | 24 नवंबर 1605 |
शासनकाल | 1605-1627 ई. |
जहाँगीर का जन्म कब हुआ – Jahangir Ka Janm Kab Hua Tha
जहाँगीर का जन्म (Jahangir Ka Janm) 31 अगस्त, 1569 ई. में फतेहपुर सीकरी में हुआ था। इनके पिता का नाम (jahangir father name) शेख सलीम चिश्ती था। जहाँगीर की माता हरकाबाई (harkha bai) मरियम उज्जमानी थी। जहाँगीर के बचपन का नाम सलीम था। अकबर सलीम को ’शेखो बाबा’ नाम से पुकारता था। सलीम ने फारसी भाषा में अपनी आत्मकथा ’तुजुक-ए-जहाँगीरी’ लिखी।
जहाँगीर की शिक्षा – Jahangir Ki Shiksha
सलीम (Prince Salim) का मुख्य शिक्षक ’अब्दुर्रहीम खानखाना’ था। इससे जहांगीर ने अरबी, फारसी, विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की। जहांगीर अरबी और फारसी भाषा का अच्छा विद्वान था।
जहांगीर का विवाह – Jahangir Ka Vivah Kisse Hua
जहांगीर (jahangir) ने 20 शादियाँ की थी। उसकी सबसे पसंदीदा बेगम नूरजहां थी। इसकी शादियां कई राजनीतिक कारणों से भी हुई थी।
- जहाँगीर का पहला विवाह 1885 ई. को आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री मानबाई से हुआ था। मानबाई के गर्भ से खुसरो का जन्म हुआ था। खुसरो के जन्म के बाद ’मानबाई शाहबेगम’ के नाम से प्रसिद्ध हुई थी।
- सलीम का दूसरा विवाह 1586 ई. में मारवाङ के शासक उदयसिंह की पुत्री जोधाबाई के साथ हुआ। जोधाबाई के गर्भ से खुर्रम या शाहजहाँ का जन्म हुआ था।
- जहाँगीर का तीसरा विवाह साहिब-ए-जमाल से हुआ था, जिसकी गर्भ से परवेज का जन्म हुआ था।
- जहाँगीर के चौथे पुत्र शहरयार का जन्म एक रखेल से हुआ था। 1611 ई. में जहाँगीर ने शेर खाँ की विधवा पत्नी ’मेहरून्निसा’ से विवाह किया था, जिससे बाद में ’नूरजहाँ’ की उपाधि प्रदान की थी।
जहाँगीर का राज्यारोहण – Jahangir Ka Shasan Kal
जहाँगीर का राज्याभिषेक 3 नवम्बर 1605 ई. को आगरा के किले में हुआ था। राज्याभिषेक के बाद जहाँगीर ’नुरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह गाजी’ की उपाधि से विभूषित हुए थे।
न्याय की जंजीर किसने और क्यों लगवाई ?
जहाँगीर ने गद्दी पर बैठने के बाद आगरा के किले व यमुना के तट पर खङे एक पत्थर के खंभे के बीच शुद्ध सोने की न्याय की जंजीर लगवाई। जहाँगीर इस न्याय की जंजीर को ’जंजीर-ए-अदली’ कहता था। इस जंजीर में 60 घंटियां थी तथा 12 आदेश जारी किये गये जो उसके ’तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में उल्लेखित है। पीङित व्यक्ति घंटी बजाकर सीधे बादशाह से फरियाद कर सकता था। जहाँगीरी ने सैनिकों के वेतन में 20 प्रतिशत वृद्धि की। 1606 में जहांगीर के पुत्र खुसरो ने विद्रोह किया।
जहाँगीर के पुत्र खुसरो का मामा मानसिंह था तथा ससुर मिर्जा अजीज कोका था। संभवतयः इन दोनों के उत्साने पर खुसरो ने विद्रोह किया था। जहाँगीर और खुसरो की सेना के बीच मुकाबला ’भैरवाल’ के मैदान में हुआ।
खुसरो पराजित हुआ और बंदी बनाया लिया गया। बाद में 1622 ई. में शाहजहाँ ने खुसरो की हत्या कर दी। खुसरो के विद्रोह से गुरु अर्जुनदेव की घटना जुङी हुई है। माना जाता है कि गुरु अर्जुनदेव ने तरण-तारण में खुसरो को शरण दी थी। अतः जहाँगीर ने गुरु को दंडित कर मार डाला।
गुरु अर्जुनदेव के पुत्र गुरु हरगोविंद को जहाँगीर ने जेल में डाल दिया। 1611 ई. तक वे जेल में रहे। 1611 ई. में जहाँगीर ने उङीसा के विरुद्ध अभियान किया। उङीसा के क्षेत्र खुर्दा को जीत लिया गया। 1611 ई. में सिन्धु के पास रोशनिया संप्रदाय के लोगों ने अहमद के नेतृत्व में विद्रोह किया। जहाँगीर ने इस विद्रोह को कुचल दिया। 1620 में जहांगीर ने सुंदरदास बघेल के नेतृत्व में कांगङा (हिमाचल प्रदेश) का अभियान किया तथा कांगङा को जीत लिया गया।
जहांगीर का इतिहास – Jahangir History in Hindi
खुसरो का विद्रोह
जहांगीर के सिंहासन पर बैठने के कुछ महीनों बाद ही अप्रैल 1606 में उसके सबसे बङे पुत्र खुसरो ने विद्रोह कर दिया। लेकिन खुसरो के मामा मानसिंह के अनुरोध पर क्षमा कर दिया। लेकिन मानसिंह के बंगाल प्रस्थान करते ही खुसरो को बंदी बनाकर आगरा के किले के एक भाग में बद कर दिया गया। लेकिन 6 अप्रैल 1606 में अपने कुछ अश्वारोहियों को साथ लेकर ’सिकन्दरा’ जहाँ अकबर का मकबरा है। अकबर के मकबरे को देखने के बहाने निकल भागा। वह सिकन्दरा से दिल्ली होते हुए लाहौर की ओर प्रस्थान किया।
लाहौर पहुँचकर सिखों के गुरु अर्जुनदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। सम्राट को जब भागने का पता चला तो उसे पकङने के लिए फरीद के नेतृत्व में एक सैनिक टुकङी भेजी। खुसरो पराजित हुआ। कुछ दिनों बाद उसे पकङ लिया गया।
1 मई 1607 ई. को बंदी बनाकर जहाँगीर के सम्मुख लाया गया। खुसरो के दायीं ओर हुसैन बेग और बायीं ओर अब्दुल्ला रहमान था। जिन्होंने खुसरो की मदद की थी। खुसरो को बंदी बनाने का आदेश दिया गया। हुसैन बेग व अब्दुल रहमान को गधे व बैल की ताजी खाल में सिल दिया गया। फिर गंधे पर बैठाकर लाहौर की सङकों पर घुमवाया गया। जिससे अन्य कोई विद्रोह करने की हिम्मत न कर सके। इसके बाद जहाँगीर ने गुरु अर्जुनदेव की ओर प्रस्थान किया। जहाँगीर ने अर्जुनदेव को 2 लाख का आर्थिक दण्ड दिया। जिसे गुरु अर्जुनदेव ने देने से मना कर देने के कारण उनकी हत्या कर दी गयी। जिससे सम्पूर्ण सिख धर्म मुसलमानों का विरोधी जिससे सम्पूर्ण सिख धर्म मुसलमानों का विरोधी हो गया। जो औरंगजेब के शासनकाल तक चलता रहा और मुस्लिम को परेशान किया।
Who is Jahangir
मेवाङ से युद्ध व सन्धि
अकबर के कई प्रयासों के बाद भी यह मेवाङ को जीतकर अधीन नहीं कर सका। जहाँगीर ने अपने पिता के समान साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण कर मेवाङ पर अधिकार करना चाहता था।
1608 में जहांगीर के अपने दूसरे पुत्र परवेज को मेवाङ के शासक अमरसिंह को पराजित करने के लिए भेजा। परवेज की सहायता के लिए महाबत खाँ को भेजा गया। अमरसिंह ने अपने राज्य की रक्षा की। अब परवेज को वापस बुला लिया गया। 1609 में अब्दुला खाँ के नेतृत्व में मुस्लिम सेना ने अरावली पर्वत में जगह-जगह छापे मारे। लेकिन अमरसिंह को पकङने में असमर्थ रहे। बाद में मिर्जा अजीज कोका को भेजा गया। लेकिन उसे भी विशेष सफलता नहीं मिली।
अब जहाँगीर ने अजमेर स्वयं आकर शाहजादा खुर्रम को (शाहजहाँ) 1614 ई. में भेजा। लेकिन अमरसिंह की छापामार सैनिक कार्यवाहियों और रसद सामग्री के रास्ते को काट देने के कारण मुगल सेना हताश हो गयी।
आखिरकार दोनों ओर से परेशान होने के कारण संधि वार्ता पर जोर दिया गया। तब अमरसिंह ने वार्ता चलाई जहाँगीर प्रसन्न हुआ।
1615 में संधि हो गयी। इस संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं-
- राणा ने सम्राट जहाँगीर की अधीनता स्वीकार कर ली।
- सम्राट ने राणा को चित्तौङ समेत सारा प्रदेश लौटा दिया। जो अकबर के काल में मुगलों के आधिपत्य में था।
- चित्तौङ की मरम्मत करना निषेध कर दिया गया।
- राणा को सम्राट के दरबार में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
- अन्य राजपूतों के समान राणा से वैवाहिक संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।
Jahangir in Hindi
नूरजहाँ
नूरजहाँ के पिता गयास बेग और माता अस्मत बेगम गयास बेग अपने बुरे समय के कारण फारस से भारत की ओर आया। रास्ते में असमग बेगम ने एक बच्ची को जन्म दिया। लेकिन गरीबी के कारण इसे अपने साथ रखने में असमर्थ होने के कारण जहाँ जन्म हुआ। वहीं छोङकर काफिले के साथ आगे बढ़ गई। लेकिन अस्मत बेगम को कुछ दूर चलने के बाद ममता से वशीभूत होने पर बच्ची को लेने अपने पति गियास बेग को भेजा। जब गियास बेग वापस लौटा तो देखता है कि बच्ची के पास एक सर्प अपना फन फैलाये कुंडली मारकर बैठा था। बच्ची को धूप से बचाने के लिए अपने फन उसके ऊपर छाया करने के लिए किया हुआ था। गियास बेग द्वारा शोर करने पर सर्प चला गया और मेहरू निसा को लेकर वापस आ गया।
गियास बेग के एक मित्र ने उसे अकबर से मिलवाया और उसे साधारण से पद पर नियुक्त दे दी। कालान्तर में मेहरूनिसा अत्यंत सुंदरी रमणी के रूप में देखती थी। उसे देखकर सलीम उसको चाहने लगा। लेकिन अकबर नहीं चाहता था कि एक नौकर की कन्या महारानी बने। इसलिए अकबर ने उसका विवाह एक अफगान सैनिक ’शेर अफगान’ से करवा दिया। लेकिन जब जहाँगीर के हाथ में सत्ता आ गई तो मेहरूनिसा के पति शेर अफगान की पुत्री थी को दरबार में बुलाया लिया गया। अब मेहरूनिसा को अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेविका नियुक्त कर दिया गया।
जहाँगीर मेहरूनिसा व उसकी पुत्री लाडली बेगम, जो शेर अफगान की पुत्री थी को दरबार में बुलाया लिया गया। अब मेहरूनिसा को अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेविका नियुक्त कर दिया गया। जहाँगीर मेहरूनिसा को अत्यंत सुंदरता का दास था इसलिए 1611 ई. में ’नवरोज त्यौहार’ के समय मेहरू निसा से विवाह कर लिया और उसे ’नूर मेहर’ की उपाधि दी गई। बाद में इसे नूरजहाँ में बदल दी गयी।
इसलिए इतिहास में मेहरूनिसा, नूरजहाँ के नाम से प्रसिद्ध हुई। जिससे आगे चलकर जहांगीर के शासन कार्यों पर कब्जा कर लिया। दोनों के नाम से सिक्के ढलवाये गये व दरबार में दोनों साथ बैठते थे। आगे चलकर नूरजहाँ के नेतृत्व में ’जुतां गुट’ जिसमें उसकी माता असमग बेगम जिसे ’इत्र’ बनाने की विधि का अविष्कार किया। पिता गियास बेग, भाई आसफगा और शम्सुद्दीन शामिल थे।
असगम बेगम के मरने से जुतां गुट या नूरजहाँ गुट टूट गया। नूरजहाँ सत्ता पर अपनी पकङ बनाने के लिए जहाँगीर के दूसरे पुत्र से अपनी पुत्री लाडली बेगम का विवाह कर दिया। आसफ खाँ ने अपनी पुत्री मुमताज का विवाह खुर्रम (शाहजहाँ) से कर दिया। अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली। इस प्रकार नूरजहाँ ने अपनी सुन्दरता का सारे जीवन में फायदा उठाया। वह सत्ता के उस चरम पर पहुंच गयी। जहाँ उसने कभी कल्पना नहीं की थी।
वह एक महत्त्वाकांक्षी महिला थी। जिसने जहाँगीर को अपने रूप लावण्य में समेट कर एक सम्राट से प्रेमी के रूप में ही रखा तथा सत्ता का उपयोग किया। अतः कह सकते है कि जहाँगीर का जीवनकाल प्रेम कथाओं से भरा पङा है और नारी-सुन्दरता तथा उसके रूप-जाल में फंसा रहा।
यदि वह प्रेमकथा बनाने के बजाय थोङा ध्यान शासन की तरफ देखा तो वह अकबर का सच्चा उत्तराधिकारी होता।
जहाँगीर की दक्षिण विजय – Jahangir Ki Dakshin Vijay
अकबर की अधूरे कामों को पूरा करने के लिए जहाँगीर के बाकी राज्यों को जीतने की योजना बनाई। 1608 में अब्दुर्रहीम खानखाना के नेतृत्व में मुगल सेना को दक्षिण विजय के लिए भेजा। अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देेने पर भी खानखाना अहमदनगर या महाराष्ट्र को नहीं जीत सका। इस कार्य में बाधक बना अहमदनगर प्रधानमंत्री व युद्ध कला का प्रकाण्ड विद्वान ’मलिक अम्बर’ ने गुरिल्ला पद्धति के जरिये मुगलों को भयभीत कर दिया। तब जहाँगीर ने परवेज के नेतृत्व में आक्रमण किया।
लेकिन अब्दुर्रहीम खानखाना के समान वह भी अहमदनगर को जीत न सका। 1611 ई. में अब्दुल्ला खान ने गुजरात की ओर आक्रमण किया।
लेकिन मलिक अम्बर के गुरिल्ला सैनिक मुगलों पर टूट पङे तथा भारी क्षति पहुंचाई। इस पर जहाँगीर को अत्यधिक गुस्सा आया। उसने शाहजादा खुर्रम की अध्यक्षता में दक्षिण की ओर अभियान किया। खुर्रम तेज गति से मार्च 1617 ई. में गुरहानपुर पहुँच गया। इस विशाल सेना को देखकर मलिक अम्बर भयभीत हो गया और सभी शर्तें मानकर अधीनता स्वीकार कर ली। यह खुर्रम की एक महान् विजय थी इसलिए इस उपलक्ष्य में जहाँगीर ने खुश होकर उसे ’शाहजहाँ’ की उपाधि प्रदान की। परन्तु मुगल मलिक को अन्तिम रूप से हार नहीं सका।
वह एक बार फिर युद्ध करने को आक्रामक हो गय और खानखाना की नाक में दम कर दिया। परन्तु अंततः दक्षिण के राज्य इस विशाल साम्राज्य के सामने नतमस्तक हो गये और मुगलों को राजस्व देना स्वीकार कर लिया। शाहजहाँ ने दक्षिण अभियान से बहुत मान-सम्मान पाया और सिंहासन के करीब पहुँचा दिया। उसने अपने भाई खुसरो की हत्या 1621 ई. में कर दी।
Jahangir Story in Hindi
शाहजहाँ का विद्रोह
जहाँगीर द्वारा अत्यधिक मदिरा-पान व अफीम खाने के कारण शरीर कमजोर हो गया। इस पर नूरजहाँ को लगा कि सम्राट अब कुछ समय के ही है। इसलिए अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उसे अपने पक्ष में भावी सम्राट होना जरूरी था। वह जानती थी कि शाहजहाँ उसे भाव नहीं देगा। तो जहाँगीर के दूसरे पुत्र शहरयार से नजदीकी रिश्ते बनाने लगी। इसे मजबूत प्रदान करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह शहरयार से कर दिया।
हालांकि जुुंता गुट नूरजहाँ की माता की मृत्यु के साथ ही समाप्त होने के कारण उसे ये कूटनीति दिखानी पङी। उसने अपने प्रभाव से शहरयार को अभियान का प्रमुख बनाया।
इससे नाराज होकर शाहजहाँ ने विद्रोह कर दिया। शाहजहाँ दक्षिण चला गया। वहाँ अपनी स्थिति मजबूत करता हुआ आगरा की तरफ आया। नूरजहाँ ने ’महावत खाँ’ को सेनापति बनाकर शाहजहाँ को कुचलने का दायित्व सौंपा था और उसने बेखूबी निभाया तथा विद्रोह का दमन कर दिया। शाहजहाँ ने मार्च 1626 में विद्रोह समाप्त कर क्षमा याचना की। जिसे उसे माफ कर दिया गया।
About Jahangir in Hindi
महावत खाँ का विद्रोह
महावत खाँ द्वारा शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने के कारण उसके मान-सम्मान में वृद्धि हो गयी। अब वह शाहजहाँ के अलावा किसी के आदेश नहीं मानता था। नूरजहाँ द्वारा सम्राट की शक्तियों को लेने के बाद महावत खाँ ईर्ष्यालु हो गया। क्योंकि नूरजहाँ, जहाँगीर से विवाह करने से पहले एक साधारण रमणी थी। महावत खाँ ने राज सिंहासन पर पररवेज का समर्थन किया। वह को कतही सहन नहीं कराना चाहता था। अब महावत खाँ को आगरा से दूर बंगाल जाने का आदेश दिया।
महावत खाँ ने बंगाल पहुँचकर विद्रोह कर दिया और राजपूतों का सहयोग लेकर आगरा की ओर चला आया। उसने राजसत्ता का हिलाकर रख दिया लेकिन जहाँगीर के कहने पर उसके सम्मुख आ गया और अपने दोषों की सजा मांगने लगा। उधर नूरजहाँ तथा आसफ खाँ, महावत खाँ को समाप्त करना चाहते थे। लेकिन उनके प्रयासों को विफल कर दिया गया और जहाँगीर से मिलकर एक बार फिर शासन व्यवस्था में सहयोग देना उसने प्रारम्भ कर दिया।
सलीम की मृत्यु कैसे हुई – Salim Ki Mrityu Kab Hui
जहाँगीर का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा था वह लाभ के उद्देश्य से कश्मीर घाटी गया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ और वापस लौट आया।
रोगग्रस्त होने के कारण 7 नवंबर 1627 को भीमवार के समीप मृत्यु हो गई। उसे लाहौर के निकट शहादरा नामक स्थान पर रावी नदी के किनारे दफनाया गया।
जहांगीर कालीन चित्रकला – About Jahangir in Hindi
जहांगीर ने सिकंदरा में ’’अकबर का मकबरा’’ बनवाया था तथा लाहौर मस्जिद का निर्माण करवाया था।
जहांगीर ने फारसी भाषा में अपनी आत्मकथा ’तुजुक-ए-जहांगीरी’ लिखी थी।
मुगल सम्राट जहांगीर को चित्रकला का बेहद शौकीन था। उसने अपने शासनकाल में चित्रकला को काफी बढ़ावा दिया था। जहांगीर के दरबार में अबुल हसन, मुहम्मद मुराद, आगारजा, मनोहर, गोवर्धन, मंसूर बिशनदास, गोवर्धन, और मनोहर थे। जहांगीर के शासनकाल को ’’चित्रकला का स्वर्णकाल’’ कहा जाता है।
मुगल सम्राट जहांगीर ने अपनी आत्मकथा ’तुजुक-ए-जहांगीरी’ में लिखा है कि ’’कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति या फिर जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो, मैं ही तुरंत बता सकता हूँ कि यह किस चित्रकार की कृति है।’’
READ THIS⇓⇓
पृथ्वीराज चौहान – Prithviraj Chauhan History in Hindi
बाबर का जीवन परिचय – Babar History in Hindi
Leave a Reply