आज के आर्टिकल में हम सिख धर्म के दसवें धर्मगुरु गुरु गोविंद सिंह (Guru Gobind Singh Ji) जी के बारे में पढेंगे। जिसके अन्तर्गत गुरु गोविंद सिंह की जीवनी (Guru Gobind Singh Biography in Hindi), गुरु गोविंद सिंह का इतिहास (Guru Gobind Singh History in Hindi), खालसा पंथ की स्थापना (Khalsa Panth ki Sthapna), गुरु गोविंद सिंह जयंती (Guru Gobind Singh Jayanti) के बारे में जानेंगे।
गुरु गोविंद सिंह – Guru Gobind Singh Ji
गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी – Guru Gobind Singh Biography in Hindi | |
जन्म | 22 दिसंबर 1666 |
जन्मस्थान | पटना, बिहार (भारत) |
मृत्यु | 7 अक्टूबर 1708 |
मृत्युस्थान | हजूर साहिब नांदेङ, भारत |
बचपन का नाम | गोबिन्द राय |
उपाधि | सिखों के दसवें गुरु, सर्बांस दानी, मर्द अगम्र, दशमेश पिताह, बाजन बाले |
पिता | गुरु तेग बहादुर (सिक्खों के नवें गुरु) |
माता | गुजरी |
विवाह | 1677, 1684, 1700 |
पत्नी | माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन |
पुत्र | साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह |
उपलब्धि | खालसा पंथ के संस्थापक |
भाषा | बिहारी, बंग्ला, पंजाबी, ब्रज (अरबी, फारसी, संस्कृत) |
रचनाएँ | श्री ग्रंथ साहिब (संग्रहित), कृष्ण अवतार, चण्डी दीवार, विचित्र नाटक (आत्मकथा), जफरनामा (फारसी भाषा)। |
नारा | वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह |
गुरु गोविंद सिंह का जन्म कब हुआ था – Guru Gobind Singh ji Ka Janam Kab Hua
गुरु गोविंद सिंह का जन्म (Guru Gobind Singh Birth Place) 22 दिसम्बर, 1666 को बिहार के पटना साहिब (भारत) में हुआ। आपजी का नाम गोबिंद राय रखा गया था।
गुरु गोविंद सिंह का परिवार – Guru Gobind Singh ji Family
गुरु गोविंद सिंह के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर जी था, जो सिक्ख धर्म के आठवें गुरु थे। गुरु गोविंद सिंह की माता का नाम गुजरी देवी था। जब आपजी का जन्म हुआ उस समय आपजी के पिता गुरु तेग बहादुर जी बंगाल और असम में सिक्ख धर्म के उपदेश दे रहे थे। पटना में जिस घर में आपजी का जन्म हुआ वहां अब ’तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब’ स्थित है। आपजी पटना में 4 वर्ष तक रहे थे। 1670 में आपजी अपने परिवार के साथ पंजाब लौट आये थे।
मार्च 1672 में आपजी अपने परिवार के साथ हिमालय की शिवालिक घाटी में ’चक नानकी’ चले गए थे। ’चक नानकी’ नामक शहर की स्थापना गुरु तेगबहादुर जी ने 16 जून, 1665 ई. में कहलूर के राजा दीप चंद जी से जमीन खरीदकर की थी। जिसका बाद में नाम बदल कर ’आनंदपुर साहिब’ रख दिया गया था। चक नानकी में आपजी ने प्राथमिक शिक्षा, भाषा ज्ञान एवं युद्ध कौशल कला सीखी। साथ ही आपजी ने गुरुमुखी, संस्कृत, हिंदी, पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, उर्दू, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।
आपजी ने 1684 में ’वर श्री भगौती जी की’ नामक महाकाव्य की रचना की। गुरु गोविंद सिंह जी ने प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ एक महान योद्धा बनने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या, लङने की कला, तीरंदाजी करना आदि सीखा था। गुरु गोविंद सिंह जी आनंदपुर साहिब में रोजाना लोगों को नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का सन्देश देते थे। आपजी के प्रभावस्वरूप यहाँ पर सभी वर्ण, रंग, जाति और संप्रदाय के लोग बिना भेदभाव के समानता एवं समरसता का ज्ञान प्राप्त करते थे।
गुरु गोविंद सिंह का विवाह – Guru Govind Singh ka Vivah
- गुरु गोविंद सिंह जी जब 10 वर्ष की आयु के थे, तब आपजी का विवाह 21 जून, 1677 को माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में हुआ था। इनके 3 पुत्र हुए थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह।
- फिर जब गुरु गोविन्द 17 वर्ष की आयु के थे तब आपजी का विवाह 4 अप्रैल, 1684 को माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। इनके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम ’अजीत सिंह’ था।
- फिर 33 वर्ष की आयु में आपजी का विवाह 15 अप्रैल, 1700 को माता साहिब देवन के साथ हुआ था। इनके कोई संतान नहीं थी।
गुरु गोविन्द सिंह के पुत्र – Guru Gobind Singh Sons
- जुझार सिंह
- जोरावर सिंह
- फतेह सिंह
- अजीत सिंह।
गुरु गोविंद सिंह का इतिहास – Guru Gobind Singh History in Hindi
गुरु गोविन्द सिंह जी गुरु गद्दी पर विराजमान – Guru Gobind Singh in Hindi
गुरु गोविंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवें गुरु थे। जब मुगल शासक औरगंजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों को जबरदस्ती इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए मजबूर किया जा रहा था तथा उन पर अत्याचार किये जो रहे थे। तब 16 कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि मंडल 1675 में गुरु तेग बहादुर जी से मिलने आनंदपुर साहिब पहुँचा। उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को कश्मीर में मुगल अधिकारियों द्वारा किए जा रहे जुल्म और जबरदस्ती इस्लाम में परिवर्तित किए जाने की कहानी सुनाई और रक्षा के लिए गुरुजी से सहायता मांगी। तब आपजी ने कहा कि ’’किसी महान पुरुष का बलिदान ही इस धर्म को बचा सकता है।’’
उस समय गुरु गोविंद (Guru Govind) जी उनकी बातों को बङा ध्यानपूर्वक सुन रहे थे, इस समय आपजी केवल 9 वर्ष की आयु के थे। आपजी ने कहा कि, ’’पिता जी, इस महान कार्य के लिए आपसे महान कौन हो सकता है।’’ इस प्रकार गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पिता को कश्मीरी हिंदुओं की रक्षा और बलिदान के लिए प्रेरित किया। जुलाई, 1675 ई. गुरु तेग बहादुर जी ने अपने बेटे गुरु गोविंद सिंह जी को गुरुगद्दी पर बैठा दिया और स्वयं दिल्ली के लिए निकल पङे।
गुरु गोविंद सिंह सिखों के 10 वें तथा अन्तिम गुरु थे। गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब का खुलकर विरोध किया था। दिल्ली पहुँचने के बाद आपजी को इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए कहा गया। जब आपने इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया तब मुगल शासक औरंगजेब ने 11 नवम्बर, 1675 को भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर कटवा दिया था। गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के बाद गुरु गोविन्द सिंह जी को 9 साल की उम्र में ही 11 नवम्बर, 1675 को सिक्खों का 10 वां गुरु बना दिया था।
गुरु गोविंद सिंह द्वारा लङे गए कुछ मुख्य युद्ध – Guru Gobind Singh ji History
गुरु गोविंद सिंह ही ने अपने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई युद्ध किये थे। इतिहासकारों के अनुसार माना जाता है कि गोविंद सिंह जी ने अपने जीवन में कुल 14 युद्ध किए थे।
- भंगानी का युद्ध (1688)
- नादौन का युद्ध (1691)
- गुलेर का युद्ध (1696)
- आनंदपुर का पहला युद्ध (1700)
- अनंस्पुर साहिब का युद्ध (1701)
- निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702)
- बसोली का युद्ध (1702)
- आनंदपुर का युद्ध (1704)
- सरसा का युद्ध (1704)
- चमकौर का युद्ध (1704)
- मुक्तसर का युद्ध (1705)।
खालसा पंथ की स्थापना – Khalsa Panth ki Sthapna
गुरु गोविन्द सिंह जी ने 13 अप्रैल, 1699 ई. को वैशाखी के दिन आनंदपुर में सभी सिखों को एकत्र होने का अनुरोध किया था। गुरु गोविन्द सिंह जी ने 13 अप्रैल, 1699 में वैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की जो सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है। खालसा का अर्थ होता है – शुद्ध या विशेष। उसके बाद आपजी ने सिख समुदाय के सामने पूछा कि – ’’कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है?’’ तभी एक स्वयंसेवक बलिदान देने के लिए सहमत हो गया था और गुरु गोविंद सिंह जी उस स्वयंसेवक को तम्बू में लेकर गए और कुछ समय बाद एक खून लगे हुए तलवार के साथ वापस लौटे।
फिर गुरु जी ने वही बात वापस दोहराई, जिससे एक स्वयंसेवक और सहमत हो गया उस स्वयंसेवक को भी गुरु जी तम्बू में अपने साथ ले गये और जब बाहर निकले तो आपजी के हाथ में खून से सना तलवार था। इसी तरह पांचवां स्वयंसेवक आपजी के साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ समय बाद गुरु गोबिंद सिंह जी सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे। इनको आपजी ने ’पंज प्यारे’ या ’पहले खालसा’ का नाम दिया।
फिर गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind) जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिलाकर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। तब 5 स्वयंसेवकों ने स्वेच्छा से खालसा को अपनाया लिया और गुरु गोविंद सिंह ने इन पाँच स्वयंसेवकों को अमृत पिलाया और स्वयं भी अमृत पिया तथा अपना नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख लिया और स्वयं एक बपतिस्मा प्राप्त सिख बन गए। उसके बाद गुरु गोबिंद सिंह (Guru Govind Singh) जी ने पांच अनुच्छेदों की स्थापना की, जिससे बपतिस्मा वाले खालसा सिखों की पहचान की गई।
खालसा के पांच प्रतीक थे
- केश – जिसे सभी गुरु और ऋषि-मुनि धारण करते आए थे।
- कंघा – एक लकङी की कंघी।
- कारा – एक धातु का कंगन।
- कचेरा – कपास का कच्छा स्फूर्ति के लिए।
- कृपाण – एक कटी हुई घुमावदार तलवार।
गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने पुरुष अनुयायियों को अपने नाम के अंत में ‘सिंह’ और महिला अनुयायियों को अपने नाम के अंत में ’कौर’ लगाने को कहा था।
गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा योद्धा के लिए कुछ नियम तैयार किये थे
- वे कभी भी तंबाकू नहीं उपयोग कर सकते।
- बलि दिया हुआ मांस नहीं खा सकते।
- किसी भी मुस्लिम के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं बना सकते।
- उन लोगों से कभी भी बात ना करें जो उनके उत्तराधिकारी के प्रतिद्वंद्वी है।
Shri Guru Gobind Singh Ji
गुरु गोविन्द सिंह के चार बेटों – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह, अजीत सिंह को ’साहिबजादे’ के रूप में जाना जाता है। आपजी के चारों बेटों ने क्रूर मुगल आक्रमणकारियों के सामने अपनी सिख पहचान को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था। आपजी के दो बङे बेटे अजीतसिंह और जुझार सिंह की मृत्यु चकमौर के युद्ध में मृत्यु हो गयी थी। सरहिन्द के सूबेदार वजीरा खाँ ने 27 दिसम्बर 1704 को गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम काबूल नहीं करने की वजह से पकङकर सरहिन्द में दीवार में जिंदा चुनवा दिया था।
साथ ही उनकी माता गुजर कौर को किले के ऊंचे बुर्ज से धक्का देकर शहीद कर दिया। जब यह सब कुछ गुरुजी को पता चला तो आपजी ने औरंगजेब को एक ज़फरनामा (Zafarnamah) लिखा, जिसमें आपजी ने औरंगजेब को चेतावनी दी कि ’’तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।’’ उसके बाद 8 मई 1705 में ’मुक्तसर’ नामक स्थान पर मुगलों से गुरु गोविंद सिंह जी का भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी विजय हुए। अक्टूबर 1706 में गुरुजी दक्षिण में चले गए तभी उन्हें औरंगजेब की मृत्यु का समाचार मिला था।
गुरु गोबिन्द सिंह की पुस्तकें – Shri Guru Gobind Singh ji Books
गुरु गोबिन्द सिंह की पुस्तकें |
ज़फ़रनामा |
चंडी दी वार (चण्डी चरित्र) |
अकाल उस्तत |
खालसा महिमा |
बचित्र नाटक |
जाप साहिब |
शास्त्र नाम माला। |
गुरु गोविंद सिंह जी पावंटा साहिब में – Guru Gobind Singh Story in Hindi
सिरमौर के राजा मेदिनी प्रकाश के निमंत्रण पर अप्रैल, 1685 में गुरु गोविंद सिंह जी अपने निवास को सिरमौर राज्य के पावंटा शहर में स्थानांतरित कर दिया। आपजी का राजा भीमचंद के साथ मतभेद था, इसी कारण आपजी को आनंदपुर साहिब छोङना पङा था और वहां से आपजी टोका शहर में चले गये थे। तभी सिरमौर के राजा मेदिनी प्रकाश ने आपजी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया था। नाहन से आपजी पावंटा के लिए रवाना हुए थे। मेदिनी प्रकाश ने आपजी को अपने राज्य में इसलिए आमंत्रित किया था, क्योंकि वह गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता था।
नाहन के शासक मेदिनी प्रकाश के अनुरोध पर गुरु गोविंद सिंह जी ने हिमाचल प्रदेश में स्थित पौंटा नामक स्थान पर ’श्री पौंटा साहिब गुरुद्वारे’ का निर्माण करवाया था। यह गुरुदारा सिख धर्म के लिए अत्यंत महत्त्वूपर्ण है। यहाँ पर आपजी ने ऊँच कोटि के साहित्य की रचना की थी। यहां आपके दरबार में 52 कवि थे।
आपके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ’संत सिपाही’ भी कहा जाता था। उनमें प्रमुख कवि थे – सुखदेव, अनी राय, पिंडी दास, सेनापत, लखन, कांशी राम और नंदलाल आदि। गुरु गोविन्द सिंह जी ने यहीं पर ’कृष्ण अवतार’ नामक ग्रन्थ की रचना की। आपजी ने रामायण और महाभारत का भी गहराई से अध्ययन किया था। यहीं पर आपजी ने हजारों सिक्खों को सैनिक प्रशिक्षण दिया तथा उन्हें लङाकू सैनिक बनाया। साथ ही आपजी ने साढौरा के पीर बुधु शाह की सिफारिश पर 500 पठानों को भी फौज में भर्ती किया था। यहाँ पर आपजी ने 4 साल रहे थे। गुरु गोविन्द सिंह जी की आत्मकथा का नाम ’विचित्रनाटक’ है।
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु – Guru Gobind Singh Death
जब दिल्ली के मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हो गयी, उसके बाद औरंगजेब का बेटा बहादुर शाह उत्तराधिकारी बना। श्री गुरु गोबिंद सिंह (Sri Guru Gobind Singh ji) जी ने बहादुर शाह को बादशाह बनाने में सहायता की थी। इसी कारण बहादुर शाह और गुरु गोबिंद जी के बीच अच्छे संबंध स्थापित हो गये थे। वहीं दूसरी तरफ गुरु गोविंद सिंह और बहादुर शाह की मित्रता सरहद के नवाब वजीद खां को खटकती थी।
गुरु गोबिंद सिंह को किसने मारा – Guru Gobind Singh ji ko Kisne Mara
इसी ईर्ष्या के कारण 1708 ई. में सरहिंद के नवाब वजीर खान ने अपने दो पठानों – जमशेद खान और वासिल बेग को गुरु की हत्या करने के लिए भेजा था। जमशेद खान के आक्रमण से गुरु गोविंद सिंह के दिल के नीचे घाव हो गया था। इस घाव का एक यूरोपीय सर्जन द्वारा इलाज भी करवा गया था, लेकिन यह ठीक नहीं हुआ था। इसी कारण गुरु गोविंद जी की मृत्यु 42 वर्ष की आयु में ही 7 अक्टूबर, 1708 को हजूर साहिब नांदेङ में हो गयी थी।
गुरु गोविंद सिंह जी के महत्त्वपूर्ण तथ्य – About Guru Gobind Singh in Hindi
- गुरु गोविन्द सिंह जी 1676 ई. में गद्दी पर बैठे और 1708 ई. तक गद्दी पर रहे। गुरु गोविन्द सिंह जी के समय में खालसा सैनिकों की संख्या लगभग 80 हजार थी।
- गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind) ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ’गुरु ग्रंथ साहिब’ को 1705 में पूरा किया। आपजी ने ’गुरु ग्रन्थ साहिब’ को अपना गुरु माना। आपजी ने कहा था कि ’’मैं मृत्यु के बाद अब कोई दूसरा सिक्खों का गुरु नहीं होगा, बल्कि अब गुरु ’गुरु ग्रन्थ साहिब’ को माना जायेगा।”
- गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिक्खों को सैनिक सम्प्रदाय खालसा में परिवर्तित कर दिया। आपजी ने लुप्त आदिग्रन्थ को पुनः संकलित करके उसका नाम ’दशम् पादशाह का ग्रन्थ’ रखा। आपजी के समय पहाङी क्षेत्र सिरमौर के शासक मेदिनी प्रकाश को अपने यहाँ आमन्त्रित किया।
- गुरु गोविन्द सिंह जी (Guru Govind) ने चार किले – आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ और फतेहगढ़ का निर्माण करवाया।
- गुरु गोबिन्द सिंह सभी धर्मों, जाति के लोगों का सम्मान करते थे और उन्हें आवश्यकता पङने पर हर वक्त उनकी मदद करते थे।
गुरु गोविंद सिंह जयंती – Guru Gobind Singh Jayanti
सिख धर्म में प्रकाश पर्व का विशेष महत्त्व है। भारत में सिख धर्मावलंबी इस प्रकाश पर्व को उत्साह के साथ मानते है। क्योंकि सिखों के 10 वें धर्मगुरु गुरु गोविंद सिंह जी जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे तथा एक अच्छे कवि थे। इतिहास के पन्नों में गुरु गोविंद सिंह के त्याग और वीरता का आज भी गुणगान होता है।
गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती 2 जनवरी 2020 को बङे धूमधाम से मनाई गई थी। गुरु गोविंद सिंह की जयंती के दिन सिख धर्म के लोग गुरुद्वारों को सजाते हैं और सिख समुदाय के लोग प्रभात फेरी निकालते हैं, अरदास, भजन, कीर्तन के साथ लोग गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते है तथा गुरुबानी का पाठ किया जाता है। इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह जयंती को बङे धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन खालसा पंत की झांकियां निकाली जाती है। प्रकाश पर्व पर लंगर का भी आयोजन किया जाता है।
गुरु गोविंद जी ने यह शब्द कहे थे, ’’सवा लाख से एक लङाऊं ?’’ इसका अर्थ होता है कि शक्ति और वीरता के संदर्भ में उनका एक सिख सवा लाख लोगों के बराबर है।
गुरु गोविंद सिंह जयंती कब है – Guru Govind Singh Jayanti
अभी 2021 में बुधवार, 20 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जी की 354 वीं जयंती मनाई जाएगी।
गुरु गोविंद सिंह से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Guru Govind Singh Question Answer
1. गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – 22 दिसंबर 1666
2. गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर – पटना, बिहार (भारत)
3. गुरु गोविन्द सिंह जी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर – गुरु तेगबहादुर
4. गुरु गोविन्द सिंह जी की माता का नाम क्या था ?
उत्तर – माता गुजरी
5. गुरु गोबिंद सिंह जी के बचपन का नाम क्या था ?
उत्तर – गोबिंद राय
6. गुरु गोबिंद सिंह जी की कितनी पत्नियाँ थी ?
उत्तर – 3
7. गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियों का नाम क्या था ?
उत्तर – माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन
8. श्री पौंटा साहिब गुरुद्वारे का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर – गुरु गोविंद सिंह जी ने हिमाचल प्रदेश में स्थित पौंटा नामक स्थान पर ’श्री पौंटा साहिब गुरुद्वारे’ का निर्माण करवाया था।
9. गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के गुरु कब बने थे ?
उत्तर – 11 नवंबर 1675
10. गुरु गोविन्द सिंह जी के पुत्रों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर – चार साहिबजादे
11. खालसा पंथ के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर – गुरु गोविंद सिंह जी
12. गुरु गोविंद सिंह जी पटना के जिस घर में रहते थे उसे वर्तमान में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर – तख्त श्री पटना हरिमंदर साहिब
13. गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में कुल कितने युद्ध किए थे ?
उत्तर – 14 युद्ध
14. गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता ने चक्क नानकी शहर की स्थापना की थी, उसे वर्तमान में किस नाम से जाना जाता हैं?
उत्तर – आनंदपुर साहिब
15. सिखों के 10 वें तथा अन्तिम गुरु कौन थे ?
उत्तर – गुरु गोविन्द सिंह
16. गुरु गोविंद सिंह जी ने ’’वर श्री भगौती जी की’’ नामक कविता की रचना कब की थी ?
उत्तर – 1684
17. गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना किस वर्ष की थी ?
उत्तर – 13 अप्रैल, 1699 को वैसाखी के दिन
18. गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखे पत्र को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर – जफरनामा
19. ’कृष्ण अवतार’ नामक ग्रन्थ की रचना किसने की थी ?
उत्तर – गुरु गोविन्द सिंह जी ने
20. गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु ग्रन्थ साहिब को किस वर्ष पूर्ण किया था ?
उत्तर – 1705
21. गुरु गोविन्द सिंह जी ने किन चार किलों का निर्माण करवाया था ?
उत्तर – आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ और फतेहगढ़
22. गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु कब हुई थी ?
उत्तर – 7 अक्टूबर 1708
23. गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु कहाँ हुई ?
उत्तर – हजूर साहिब नांदेङ, भारत
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