आज के आर्टिकल में हम गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) के बारे में पढ़ेंगे। जिसके अन्तर्गत हम गोखल का जीवन परिचय (Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi), गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीतिक जीवन (Gopal Krishna Gokhale Ka Rajnitik Jivan), भारत सेवक समाज की स्थापना (Bharat Sevak Samaj), गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक और आर्थिक विचार (Gopal Krishna Gokhale Ke Rajnitik or Arthik Vichar) के बारे में जानेंगे।
गोपाल कृष्ण गोखले – Gopal Krishna Gokhale
गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय (Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi) |
जन्म – 9 मई, 1866 ई. |
जन्मस्थान – महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोथलुक में |
मृत्यु – 19 फरवरी 1915 ई. |
मृत्युस्थान – मुम्बई, महाराष्ट्र |
मृत्यु का कारण – मधुमेह, दमा |
पिता – कृष्णराव श्रीधर गोखले |
माता – वालुबाई गोखले |
भाई – गोविन्द राव |
धर्म – हिन्दू |
शिक्षा – राजाराम काॅलेज (कोल्हापुर), कोल्हापुर, एलफिन्स्टन काॅलेज (मुम्बई) |
विवाह – प्रथम विवाह – सन् 1880 में |
प्रथम पत्नी – सावित्रीबाई |
द्वितीय विवाह – सन् 1887 में |
दो पुत्रियाँ – काशीबाई और गोदुबाई |
राजनीतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी |
संस्थापक – सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी (भारत सेवक समाज) |
आंदोलन – भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन |
प्रसिद्धि – स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं समाज सुधारक, शिक्षाशास्त्री, महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु |
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म कब हुआ- Gopal Krishna Gokhale Ka Janm Kab Hua
- गोपाल कृष्ण गोखल का जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोथलुक के एक निर्धन चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- उनके पिता कृष्णराव श्रीधर गोखले थे, जो एक किसान थे। उनकी माता वालुबाई गोखले थी, जो एक घरेलू महिला थी।
- 10 वर्ष की आयु में इनके माता-पिता का देहांत हो गया था इनके बङे भाई ने इनको पढ़ाया।
गोपाल कृष्ण गोखले की शिक्षा – Gopal Krishna Gokhale Ki Shiksha
गोखले (Gokhale) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोथलुक के हाई स्कूल में प्राप्त की। गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 वर्ष की आयु में 1884 में स्नातक (बी.ए.) की परीक्षा उत्तीर्ण की। गोपाल कृष्ण गोखले (Gopala Krishna Gokhale) उस समय के किसी भी भारतीय द्वारा पहली बार काॅलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले चंद लोगों में से एक थे। स्नातक की डिग्री प्राप्त के बाद उनकी मुलाकात महादेव गोविंद रानाडे से हुई। वह रानाडे के जीवन और विचारों से बहुत प्रभावित हुए। रानाडे एक न्यायाधीश, विद्ववान और समाज सुधारक थे। गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale Information in Hindi) ने महाराष्ट्र के सुकरात कहे जाने वाले एम. जी. रानाडे को अपना गुरु बना लिया। 1886 में गोखले एम.जी. रानाडे द्वारा स्थापित दक्कन एजुकेशन सोसाइटी संस्था के सदस्य बने। लगभग 20 वर्ष तक इस सभा से जुङे रहे। 1882 में कोल्हापुर के राजाराम काॅलेज में दाखिला लिया और प्रीवियस की परीक्षा पास की। राजाराम काॅलेज में उस समय दूसरे वर्ष का पाठ्यक्रम नहीं था। इसी कारण उन्हें पुणे के डेक्कन काॅलेज में जाना पङा।
आखिरी साल की पढ़ाई एलफिंस्टन काॅलेज से पास की। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद गोपाल कृष्ण गोखले का नाम उन चुनिंदा भारतीयों में शामिल हो गया, जिन्होंने पहली बार विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त की थी। गोखले को पढ़ाई के लिए हर महीने सरकार से 20 रुपये की छात्रवृत्ति मिलती थी, इसलिए परिवार की आर्थिक हालात खराब नहीं हुए। बी. ए. पास करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग काॅलेज में दाखिला लिया, लेकिन उनका मन इंजीनियरिंग में नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने लाॅ की पढ़ाई करने का फैसला लिया और पुणे के डेक्कन काॅलेज में नामांकन करवा लिया।
Gopal Krishna Gokhale Biography
पारिवारिक जिम्मेदारियाँ पर गोखल पर थी इसलिए उन्होंने पुणे के स्कूल में सहायक अध्यापक की नौकरी की। साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों को पढ़ाया। इसी दौरान उन्होंने कानून की परीक्षा भी पास कर ली। लाॅ के पास करने के बाद गोखले बाल गंगाधर तिलक और गोपाल गणेश अगरकर के संपर्क में आए। दोनों के विचारों का गोखले पर गहरा प्रभाव पङा। गोखले दक्षिण शिक्षा समाज से जुङकर वहाँ पर शिक्षक के तौर पर कार्य करने लगे। बाल गंगाधर तिलक तथा आगरकर ने न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। यह स्कूल बाद में फर्ग्युसन काॅलेज में परिवर्तित हो गया। गोखले यहाँ पर इतिहास तथा अंग्रेजी के प्राध्यापक थे। यहाँ पर उन्होंने 20 वर्षों तक शिक्षण का कार्य किया। वे बच्चे को शिक्षा के साथ-साथ कर्त्तव्य परायणता, उच्च नैतिकता, स्वालंबन आत्मसम्मान एवं देशभक्ति की शिक्षा देते थे। काॅलेज में रहकर काॅलेज की उन्नति के लिए अनेक प्रकार के कार्य करते थे वे काॅलेज के लिए धन भी एकत्र करते थे। 20 वर्षों में उन्होंने उस काॅलेज को एक आदर्श काॅलेज बना दिया।
यद्यपि गोखले इतिहास और अर्थशास्त्र के प्रध्यापक थे, किन्तु गणित में वे विशेष योग्यता रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति भी उनका विशेष लगाव था। गोखले ने महादेव गोंवद रानाडे के साथ ’पूना सार्वजनिक सभा’ में काम किया, जिसके वह सचिव बन गये। 1885 में कोल्हापुर में गोखले ने अंग्रेजी शासन के अधीन भारत पर जोरदार भाषण दिया। जिस भाषण की सभी ने तारीफ की। उन्होंने एडमंड बर्क की पुस्तक ’रिफ्लेक्शन्स ऑफ़ द फ्रेंच रिवोल्यूशन’ को कंठस्थ कर, बर्क से न केवल भाषण कला की प्रेरणा प्राप्त की बल्कि ब्रिटिश रूढ़िवाद को भी अपना लिया। गोखले का उदारवादी चिंतन तथा उनके क्रांति विरोधी विचार, बर्क के विचारों से ही प्रभावित थे।
गोपाल कृष्ण गोखले का विवाह – Gopal Krishna Gokhale Ka Vivah
- गोपाल कृष्ण गोखले (Gopala Krishna Gokhale) की 2 बार शादी हुई थी।
- गोखले का प्रथम विवाह सन् 1880 में सावित्रीबाई से हुआ था, लेकिन वे काफी कमजोर तथा असाध्य रोग से ग्रसित थी जिस कारण कुछ समय बाद ही उसका देहांत हो गया था।
- फिर 1887 में गोखले का दूसरा विवाह हुआ। उनकी दूसरी पत्नी ने 2 बेटियों को जन्म दिया था – काशीबाई और गोदुबाई। लेकिन उनकी दूसरी पत्नी का भी 1900 में ही देहांत हो गया।
गोखले द्वारा पत्रकारिता को प्रोत्साहन देना
- गोखले की देशभक्ति पूर्ण लेखनी के सभी प्रशंसक थे। हालांकि उन्होंने पत्रकारिकता को जीविका के रुप में नहीं अपनाया।
- लेकिन मराठा पत्र के लिए कुछ लेख लिखे तथा केसरी पत्रिका के लिए समाचारों का संग्रह किया।
- आगरकर ने ’सुधारक’ नाम की पत्रिका निकाली, जिसका अंग्रेजी भाग का कार्यभार 1888 में गोखले ने संभाला। अपने लेखों द्वारा वह देशभक्ति को जगाना चाहते थे।
गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीतिक जीवन – Gopal Krishna Gokhale Ka Rajnitik Jivan
गोपाल कृष्ण गोखले (Gopala Krishna Gokhale) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बङे नेता थे। 1888 में कांग्रेस का इलाहाबाद अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता ’जाॅर्ज यूल’ ने की थी। इस इलाहाबाद अधिवेशन में गोखले शामिल हुए थे और पहली बार कांग्रेस के सदस्य बने थे। सन् 1895 में गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, पूना में ’रिसेप्शन कमेटी’ के सचिव बने। गोखले दो बार पुणे नगर निगम के अध्यक्ष चुने गये। गोखले कई वर्षों तक बम्बई कांग्रेस के भी सचिव रहे थे। 1892 के एक्ट की खामियों को गोखले (Gokhale) सामने लाये थे। गोखले बहुत अच्छे वक्ता थे। इसलिए 1897 में दक्षिणी शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में गोखले और वाचा को इंग्लैंड जाकर वैल्वी आयोग के समक्ष गवाही देने को कहा गया। गोखले ने भारत सरकार का बजट इम्पीरियल काउंसिल के द्वारा पास करने के बाद लागू करने का सुझाव दिया था।
1899 में गोखले को मुंबई विधान परिषद् का सदस्य बनाया गया। मुंबई विधान परिषद में उन्होंने अपनी बात मजबूती से रखी और भूमि संबंधी कानून की निन्दा की। 1902 में गोखले को केन्द्रीय विधान परिषद् के सदस्य बने। ये सरकार की आर्थिक नीति के बङे आलोचक थे। गोपाल कृष्ण गोखले उदारवादी और नरमपंथी नेता थे। गोखले ने केन्द्रीय विधान परिषद् में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ करने, सरकारी सेवाओं में भारतीयों को समान स्थान दिलाने की सलाह दी। साथ ही सरकारी व्यय में कटौती, भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश नियंत्रण दूर करने का सुझाव दिया। उन्होंने नमक कर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने के मुद्दे को काउंसिल में उठाया। गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्रवादी भी थे।
1905 के कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) जी द्वारा की गई और वे कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये। बनारस अधिवेशन में उन्होंने बंगाल विभाजन के फैसले की आलोचनाा की थी और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को सही ठहराया था। 1912 से लेकर 1925 तक गोखले भारतीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष भी रहे। गोपाल कृष्ण गोखले भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। देश की आजादी और राष्ट्र निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान अमूल्य है। देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में गोखले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
भारत सेवक समाज की स्थापना – Bharat Sevak Samaj Ki Sthapna
अपनी राजनीतिक गतिविधियों के अलावा गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale Information) ने सामाजिक सुधार के लिए कार्य किये। राष्ट्र की सेवा के लिए राष्ट्रीय प्रचारकों को तैयार करने हेतु और राजनीति के आध्यात्मीकरण की परम्परा को स्थायी रूप देने के लिए गोपाल कृष्ण गोखले ने 12 जून, 1905 को भारत सेवक समिति (Bharat Sevak Samaj) अर्थात् सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी (Servent of India Society) की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रभक्तों की एक पीढ़ी तैयार करने की चेष्टा की, जो भारत के सभी वर्गों और समुदायों के बीच सद्भाव स्थापित करने के इच्छुक हों और महिलाओं व दलितों की शिक्षा और उत्थान में रुचि रखते हों।
इस संस्था से पैदा होने वाले महत्वपूर्ण समाज सेवकों में श्रीनिवास शास्त्री, जेके देवधर, एन. एम. जोशी, पंडित हृदय नारायण, कुंजरू आदि थे। ये समाज सेवक भारत सेवक समाज नामक संस्था से प्रशिक्षित हुए और इस संस्था के सदस्य के रूप में अपनी सेवा भी प्रदान की तथा भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका भी निभाई। देशभक्तों की सोच विकसित करने में इस संस्था का महत्त्वपूर्ण येागदान था। इस संस्था की स्थापना के मूल में उनकी यही आकांक्षा थी कि ऐसे लोगों को प्रेरित और प्रशिक्षित किया जाए जो सभा के कार्य को आध्यात्मिक लक्ष्य मानकर पवित्र यज्ञ की भाँति सम्पन्न कर सकें। भारत के विभिन्न प्रांतों के योग्य और शिक्षित व्यक्ति इस संस्था में सम्मिलित किए गए और उन्हें देश के लिए समर्पण भाव को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।
भारत सेवक समाज के उद्देश्य – Bharat Sevak Samaj ki Uddeshya
भारत सेवक समाज के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे –
- धार्मिक भावना से प्रेरित होकर मातृभूमि की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने को प्रेरित करना।
- सार्वजनिक प्रश्नों के सतर्क अध्ययन और देश के सार्वजनिक जीवन को सर्वांगीण सुदृढ़ता प्रदान करने पर आधारित, राजनीतिक शिक्षा और आन्दोलन को संगठित करने का कार्य करना।
- शैक्षणिक प्रयासों, विशेषतः महिलाओं और पिछङे वर्गों की शिक्षा के लिए तथा औद्योगिक तथा वैज्ञानिक शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयत्नों से सहायता करना।
- जनता में विचारों और उदाहरणों के माध्यम से मातृभूमि के लिए गहनतम प्रेम की भावनाा उत्पन्न करना और इसके लिए सेवा व बलिदान के लिए तत्परता उत्पन्न करना।
- दलित वर्गों की शिक्षा के लिए प्रयत्न करना।
- देश के औद्योगिक विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयत्नों को बल प्रदान करना।
- भारत के ब्रिटेन के साथ सम्बन्धों को बनाए रखना।
- ब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारत के लिए स्वशासन प्राप्त करना।
संस्था के इन प्रमुख उद्देश्यों से गोखले के राजनीतिक आध्यात्मीकरण का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। उनके राजनीतिक आध्यात्मीकरण के प्रयासों की सराहना करते हुए गाँधीजी ने टिप्पणी की थी, ’’यदि हमारे साधु, ऋषि-मुनि, मौलवी और पादरी जनता पर राजनीति के व्यापक प्रभावों को आत्मसात् कर लें तो प्रत्येक गाँव में स्र्वेन्ट्स ऑफ़ इण्डिया सोसायटी की स्थापना स्वतः हो जायेगी और धार्मिक भावना ऐसा सर्वव्यापक स्वरूप धारण कर लेगी कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था का घृणित स्वरूप स्वतः परिष्कृत हो जायेगा।’’
1906 में भारतीय जनता के विचारों से इंग्लैण्ड की जनता को अवगत कराने के लिए गोखले को इंग्लैण्ड भेजा गया।
महात्मा गांधी और जिन्ना के परामर्शदाता और गुरु
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे – Mahatma Gandhi Ke Rajnitik Guru Kaun The
गोपाल कृष्ण गोखले को महात्मा गाँधी अपना राजनीतिक गुरु (Gandhi Political Guru) मानते थे।
गोखले के परामर्श से ही गांधीजी ने सक्रिय राजनीति में भाग लेने से पूर्व एक वर्ष तक देश में भ्रमण करके स्थिति का अध्ययन करने का निश्चय किया था। साबरमती आश्रम की स्थापना के लिए गोखले ने गांधीजी को आर्थिक सहायता दी थी। गांधीजी को अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता संग्राम की लङाई की प्रेरणा गोखले से ही मिली थी। गोखले की प्रेरणा से ही गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आन्दोलन चलाया था। सन् 1912 में गांधीजी के आमंत्रण पर गोखले दक्षिण अफ्रीका गये और वहाँ रंगभेद की निन्दा की। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ऑटोबायोग्राफी में गोखले का अपना परामर्शदाता और मार्गदर्शक कहकर संबोधित किया है। गाँधीजी की गोखले के प्रति इतनी श्रद्धा होने पर भी गांधी उनके वेस्टर्न इंस्टिट्यूशन के विचार से सहमत नहीं थे। गांधीजी गोखले (Gokale) के भारत सेवक समाज नामक संस्था का सदस्य बनने से भी इंकार कर दिया था। गांधी के अनुुसार गोखले उनके पसंदीदा लीडर थे और एक निपुण राजनीतिज्ञ भी थे।
गोखले (About Gopal Krishna Gokhale in Hindi) केवल गांधीजी के ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु और परामर्शदाता थे। जिन्ना को ’मुस्लिम गोखले’ भी कहा जाता था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के लखनऊ समझौते के बाद सरोजिनी नायडू द्वारा जिन्ना को ’हिन्दू-मुस्लिम एकता’ का ब्रांड एम्बेसेडर भी कहा गया। जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता को भारत के लिए कल्याणकारी मानते थे, उनका कहना था कि बहुसंख्यक होने और शिक्षा की दृष्टि से उन्नति होने के कारण हिन्दूओं का कर्त्तव्य है कि सामान्य राष्ट्रहित की भावना विकसित करने में मुस्लिम भाइयों के सहायक बने।
गोपाल कृष्ण गोखले के लिए विद्वानों द्वारा कहे गए शब्द
महात्मा गांधी ने कहा, ’’सर फिरोजशाह मुझे हिमालय की तरह दिखाई दिए। जिसे मैं माप नहीं सकता था, लोकमान्य तिलक महासागर की तरह जिसमें कोई आसानी से उतर नहीं सकता, पर गोखले तो गंगा के समान थे जो सबको अपने पास बुलाती है।’’
बाल गंगाधर तिलक जी ने गोखले को भारत का हीरा, महाराष्ट्र का लाल और कार्यकर्ताओं का राजा कहकर उनकी प्रतिभा को सराहा है।
गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु कब हुई – Gopal Krishna Gokhale Ki Mrityu Kab Hui
- गोपाल कृष्ण गोखले का निधन 19 फरवरी, 1915 को महाराष्ट्र में मधुमेह एवं दमा जैसी बीमारी के कारण हो गया था।
- इनकी मृत्यु 49 वर्ष की आयु में हुई।
गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक विचार – Gopal Krishna Gokhale Ke Rajnitik Vichar
(1) उदारवादी आग्रह
- गोखले महान उदारवादी विचारक थे। उदारवादी मूल्यों – जनता की स्वतंत्रता, व्यक्ति की गरिमा का आदर, विधि का शासन, नियंत्रित सरकार, समानता और न्याय में गोखले की गहरी आस्था थी। वे भारतीय जनता में इन मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करना चाहते थे, ताकि वह कालान्तर में ’आत्मनिर्णय’ के अधिकार का वास्तविक उपयोग कर सके। वे ब्रिटिश शासन से यह अपेक्षा करते थे कि भारतीय शासन में वे इन मूल्यों को लागू करें।
(2) ब्रिटिश जाति की उदारता और न्यायप्रियता में विश्वास
- गोखले में ब्रिटिश उदारवाद के प्रति गहरी आस्था थी। ब्रिटिश जाति की उदारता और न्यायप्रियता का बखान करते हुए वे भारतीय जनता को राजभक्ति का संदेश देते थे और ब्रिटेन की उदारता और न्यायप्रियता को जगाते हुए उन्हें भारत के प्रसंग में उदार आचरण का परिचय देने के लिए प्रेरित करते थे।
(3) ब्रिटिश शासन एक ईश्वरीय वरदान
- गोखले की ब्रिटिश प्रशासन में गहरी आस्था थी और ब्रिटिश प्रशासन को भारत के लिए ईश्वरीय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि भारत की राजनीतिक एकता, शासन व्यवस्था, संचार व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, स्थानीय संस्थाएँ आदि सब ब्रिटिश शासन की अमूल्य देन हैं। गोखले के अनुसार ब्रिटिश शिक्षा, साहित्य और विचारधारा अर्थात् उदार प्रजातान्त्रिक मूल्यों ने भारत में राष्ट्रीयता और प्रजातान्त्रिक विचारों को जन्म दिया।
(4) राजनीति का आध्यात्मीकरण
- गोखले राजनीतिक गतिविधियों और सार्वजनिक जीवन में साधनों की पवित्रता में विश्वास रखते थे। उनका दृढ़ मत था कि पवित्र साधनों से ही पवित्र साध्य की प्राप्ति की जा सकती है। उनका मत था कि राजनीति जनसेवा का साधन तभी बन सकती है जब उसका आध्यात्मीकरण हो जाए।
- गोखले ने राजनीति में नैतिकता पर अत्यधिक बल दिया। राजनीति में नैतिक तत्त्वों को महत्त्व देने के कारण ही गोखले (Gopala Krishna Gokhale in Hindi) को महात्मा गाँधी ने अपना राजनीतिक गुरु कहा था।
(5) स्वशासन सम्बन्धी विचार
- गोखले ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारत के लिए स्वशासन चाहते थे। वे यद्यपि क्रमिक सुधारों के मार्ग को अपनाने में ही विश्वास करते थे, लेकिन इन सुधारों का अन्तिम लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत अधिराज्य की स्थिति प्राप्त करना था।
(6) सत्ता के केन्द्रीकरण के विरोध तथा विकेन्द्रीकरण का समर्थन
- गोखले सत्ता के केन्द्रीकरण के विरोधी थे। उनके अनुसार भारतीयों को उनके अधिकार तभी प्राप्त हो सकते थे जब ब्रिटिश सरकार सत्ता के विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाती। गोखले ने इसकी आवश्यकता को नौकरशाही पर तत्काल नियंत्रण हेतु स्वीकार किया। उनका मानना था कि प्रान्तीय विकेन्द्रीकरण तभी सफल हो सकता है जब प्रान्तीय परिषदों के आकार में वृद्धि हो और उन्हें प्रान्तीय बजट पर विवाद करने का अधिकार दे दिया जाए। वे जिलाधीशों को प्रशासन के मामलों में सलाह देने के लिए जिला परिषदों के निर्माण के पक्षधर थे।
गोखले ने हाॅब हाउस कमीशन (1908) के समक्ष सत्ता के विकेन्द्रीकरण हेतु तीन बातों को विशेष रूप से आवश्यक बताया है –
- शिखर पुनर्गठित विधान परिषदों की स्थापना की जाए।
- मध्य स्तर पर जिला परिषदों की
- निम्न स्तर पर ग्राम पंचायतों की स्थापना की जाए।
गोपाल कृष्ण गोखले के आर्थिक विचार – Gopal Krishna Gokhale Ke Arthik Vichar
गोखले तत्कालीन भारत की आर्थिक दुर्दशा से बहुत चिन्तित थे। उन्होंने न केवल तत्कालीन भारत की आर्थिक दुर्दशा के मूल कारणों का विश्लेषण प्रस्तुत किया अपितु भारत के उत्थान और समृद्धि के उपायों पर भी प्रकाश डाला। गोखले के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(1) आय-व्यय के सन्तुलन के पक्षधर
- वे भारत सरकार के आय और व्यय के बीच अधिक संतुलन स्थापित करने के पक्षधर थे। इस सम्बन्ध में उनका सुझाव था कि आय का अधिक न्यायोचित ढंग से वितरण किया जाए।
(2) भारत में सैनिक व्यय में कमी का आग्रह
- गोखले के अनुसार भारत के कुल राजस्व व्यय और सैनिक व्यय का अनुपात अन्य देशों की तुलना में अधिक था।
सैनिक व्यय में कमी करने सम्बन्धी गोखले के सुझाव अग्रलिखित थे –
- गोखले (Gk Gokhale) के मतानुसार एक आरक्षित सेना का निर्माण किया जाए जिस पर शांतिकाल में अधिक खर्च नहीं होगा, वहाँ युद्ध और आक्रमण की स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।
- सेना का भारतीयकरण किया जाए। इससे भर्ती सम्बन्धी खर्चे कम होंगे, वेतन कम देना पङेगा और भारतीयों को रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- भारत की भौगोलिक सीमाओं से बाहर इंग्लैंड की इच्छानुसार भारत की सेना का इस्तेमाल किया जाए, तो उस पर आने वाले व्यय का एक निश्चित भाग इंग्लैंड के राजस्व से भी लिया जाना चाहिए।
(3) निर्बाध (मुक्त) व्यापार नीति के प्रति संशय और विरोध
- गोखले उदारवादी होते हुए भी भारत के निर्बाध व्यापार तथा कम से कम हस्तक्षेप की नीति के पक्षपाती नहीं थे। उनका आग्रह था कि भारत की विशिष्ट आर्थिक परिस्थितियों में ब्रिटिश राज को ’संरक्षण की सतर्क नीति’ के साथ मुक्त व्यापार की मर्यादित नीति का पालन करना चाहिए।
इस प्रकार की आर्थिक नीति और वाणिज्यिक नीति से उनका आशय था –
- भारत में नए और आधुनिक उद्योगों की स्थापना और विकास में ब्रिटिश सरकार को सहयोग देना चाहिए।
- भारतीय उद्योगों को ब्रिटेन सहित विश्व के समृद्ध और उन्नत उद्योगों के साथ खुली प्रतियोगिता से बचाया जाना चाहिए।
- भारत के अन्दर भारतीय उद्योगों के बीच प्रतियोगिता होनी चाहिए ताकि वे अपनी तकनीक और प्रबन्ध कला आदि में उन्नति की प्रेरणा प्राप्त करें।
- भारतीय उद्योगों का विकास तो होना चाहिए, किन्तु उनमें एकाधिकारवादी प्रवृत्ति का विकास नहीं होना चाहिए।
गोखले भारतीय उद्योगों के लिए ऐसी सरकारी नीति चाहते थे जो आर्थिक संरक्षण और मुक्त व्यापार के दोषों से मुक्त हो।
(4) औद्योगीकरण और तकनीकी शिक्षा पर बल
- गोखले भारत का औद्योगीकरण करना चाहते थे। वे भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारत के उद्योगपतियों को जहाँ उद्योगों के विकास का सुझाव दिया वहाँ उन्होंने विदेशों में मण्डियाँ खोलने के लिए भी कहा। उन्होंने नवयुवकों को तकनीकी शिक्षा में प्रशिक्षण देने और अपने क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करने पर जोर दिया।
(5) स्वदेशी का समर्थन
- गोखले के अनुसार सच्चा स्वदेशी आन्दोलन देशभक्ति का प्रतीक है। वे स्वदेशी की भावना को नैतिक, राष्ट्रीय, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से उचित मानते थे।
(6) भारत सचिव के व्यय को इंग्लैंड और भारत के मध्य बाँटना
- गोखले का मत था कि भारत सचिव साम्राज्यीय केबिनेट का सदस्य होता है, अतः उसके और उसकी परिषद के कर्मचारियों पर होने वाले व्यय को केवल भारतीय राजस्व पर भारित नहीं होना चाहिए बल्कि उसे इंग्लैंड और भारत के बीच बराबर-बराबर बाँटना चाहिए।
गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीतिक वसीयतनामा – Gopal Krishna Gokhale Ka Vasiyatnama
सन् 1914 में मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम में सुधार व प्रशासनिक और संवैधानिक सुधारों हेतु बम्बई के गवर्नर विलिंगटन ने गोपाल कृष्ण गोखले (Gopalakrishna Gokale) से आग्रह किया कि वे प्रशासनिक सुधारों का एक प्रारूप तैयार करें। गोखले ने 1915 में ब्रिटिश सरकार को यह प्रारूप सौंपा किन्तु इसे सरकार द्वारा अगस्त, 1917 में गोखले की मृत्यु बाद प्रकाशित किया गया इसलिए इस प्रारूप को गोखले का वसीयतनामा (Gokhale Ka Vasiyatnama) कहा जाता है।
गोखले के वसीयतनामे के प्रमुख पक्ष या सुझाव
(अ) प्रान्तीय शासन से सम्बन्धित सुझाव –
गोखले प्रान्तीय शासन में भारतीयों की आधिकारिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते थे जिससे भारत में स्वशासन का आधार तैयार हो सके। इस सम्बन्ध में उनके प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-
1. प्रान्तीय कार्यकारिणी – प्रान्तीय कार्यकारिणी के सन्दर्भ में निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए –
- प्रान्तीय कार्यकारिणी का अध्यक्ष गवर्नर हो, जिसकी नियुक्ति इंग्लैंड के द्वारा की जाए।
- गवर्नर की मदद के लिए कार्यकारिणी परिषद होगी जिसमें कुल छह सदस्य हों, जिनमें कम से कम तीन भारतीय हों। प्रान्तीय परिषद में भारतीय नागरिक सेवा के सदस्यों को चुना जाना चाहिए।
- प्रान्तीय शासन के निम्न विभागों को उसके अग्रलिखित छह सदस्यों में स्पष्ट रूप से बाँटा जाए और उन्हें इनका प्रभारी बनाया जाए – गृह, वित्त, शिक्षा, सार्वजनिक निर्माण, स्थानीय प्रशासन, उद्योग और वाणिज्य।
2. प्रान्तीय व्यवस्थापिका – प्रान्तीय परिषद के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए –
- प्रत्येक प्रान्त की व्यवस्थापिका, विधानपरिषद की सदस्य संख्या 75 से 100 तक होनी चाहिए। इसमें कुल 80 प्रतिशत सदस्य विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों और विशिष्ट वर्ग द्वारा निर्वाचित होने चाहिए। मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को इन विधान परिषदों में विशेष प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। 20 प्रतिशत सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त गैर सरकारी होने चाहिए। ये सदस्य विशेषज्ञ होने चाहिए।
- प्रान्तीय सरकार के पास राजस्व के निम्नलिखित स्रोत होने चाहिए – भू-राजस्व, आबकारी, वन, सिंचाई, स्टाम्प रजिस्ट्रेशन आदि। प्रान्तीय सरकारों को करों से प्राप्त राजस्व का एक हिस्सा केन्द्र सरकार को अंशदान के रूप में देना चाहिए।
- प्रान्तीय विधान परिषद को प्रान्तीय विषयों पर कानून बनाने का अधिकार होना चाहिए।
3. प्रान्तीय कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में सम्बन्ध – कार्यपालिका का अस्तित्व भले ही प्रान्तीय व्यवस्थापिका के विश्वास मत पर आधारित नहीं हो, किन्तु उसे प्रान्तीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।
4. प्रान्तीय शासन का विकेन्द्रीकरण – प्रान्तीय शासन को जिला स्तर पर विस्तृत रूप से विकेन्द्रीकृत किया जाना चाहिए।
इसके लिए निम्नलिखित व्यवस्था की जानी चाहिए –
- जिला स्तर पर परामर्शदात्री संस्था की स्थापना की जानी चाहिए। इस परिषद में आधे सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित होने चाहिए। कलेक्टर को इस परिषद के परामर्श को मानना आवश्यक होना चाहिए ताकि जिले के प्रशासन पर लोकप्रिय नियंत्रण स्थापित हो।
- कस्बा और तालुका पर क्रमशः नगर परिषद, तालुका परिषद की स्थापना की जानी चाहिए और इन संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए।
- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत की स्थापना की जानी चाहिए। इसमें निर्वाचित सदस्यों के अलावा कुछ मनोनीत सदस्य भी होने चाहिए।
(ब) केन्द्रीय शासन से सम्बन्धित सुझाव –
केन्द्रीय शासन के सम्बन्ध में गोखले ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं –
1. केन्द्रीय कार्यपालिका –
- केन्द्रीय शासन का अध्यक्ष ’वायसराय’ होना चाहिए। शासन में उसकी मदद के लिए उसकी एक कार्यकारी परिषद अर्थात् वायसराय की कार्यकारी परिषद होनी चाहिए। इसमें कुल छह सदस्य होने चाहिए, जिनमें से कम से कम दो भारतीय होने चाहिए।
- वायसराय की कार्यकारी परिषद को निम्नलिखित छह विभागों का प्रशासन करना चाहिए – आन्तरिक विभाग, वित्त, विधि, संचार, प्रतिरक्षा और विदेश।
2. केन्द्रीय व्यवस्थापिका – केन्द्रीय व्यवस्थापिका को इम्पीरियल लैजिस्लेटिव कौंसिल की जगह भारतवर्ष की विधानसभा नाम दिया जाना चाहिए। इसकी सदस्य संख्या 100 की जानी चाहिए। केन्द्रीय विषयों के शासन में केन्द्रीय विधानसभा की भूमिका में प्रभावशाली वृद्धि की जानी चाहिए, विशेषकर उसे रक्षा और वित्त के मामलों में अधिक अधिकार और शक्तियाँ प्राप्त होनी चाहिए।
(स) अन्य सुझाव
प्रान्तीय शासन और केन्द्रीय शासन के अलावा गोखले ने निम्नलिखित सुझाव दिए –
- भारत में सम्पूर्ण शासन का गठन एकात्मक शासन व्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए, लेकिन प्रान्तीय शासन पर केन्द्र का नियंत्रण कम हो।
- प्रान्तीय सरकार को निर्धारित अनुपात में अपने द्वारा एकत्रित राजस्व का एक हिस्सा भारत की केन्द्रीय सरकार को अंशदान के रूप में दिया जाना चाहिए। यह व्यवस्था पाँच वर्ष के लिए की जानी चाहिए अर्थात् प्रति पाँच वर्ष बाद इसमें उचित संशोधन किए जाने चाहिए।
- भारतीय शासन में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को पृथक् निर्वाचन पद्धति द्वारा प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
- इंग्लैंड स्थित भारत मंत्री की परिषद समाप्त की जानी चाहिए। भारत मंत्री का पद बना रहना चाहिए किन्तु उसके अधिकारों में पर्याप्त कमी की जानी चाहिए।
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