आज के आर्टिकल में हम जानेंगे कि बाबर कौन था (Babar History in Hindi)। बाबर का जीवन परिचय (Babar Ka Jivan Parichay), बाबर का इतिहास (Babar History in Hindi), बाबर के युद्ध (Babar Ke Yudh) के बारे में जानेंगे।
बाबर कौन था – Babar History in Hindi
बाबर का जीवन परिचय – Babar ka Jivan Parichay | |
पूरा नाम | जहीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर |
जन्म | 14 फरवरी 1483 (23 फरवरी 1483) |
जन्मस्थान | उज्बेकिस्तान के फरगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में |
मकबरा | काबुल |
मृत्यु | 26 दिसंबर 1530 |
मृत्युस्थान | आगरा, मुगल साम्राज्य |
मकबरा | काबुल |
शासन | 30 अप्रैल 1526-26 दिसम्बर 1530 ई. |
पिता | उमर शेख मिर्जा |
माता | कुतलुग निगार खानम |
दादा | मिर्जा अबु शेख |
दादी | आईशां दौलत बेगम |
नाना | यूनुस खान |
नानी | एहसान दौलत बेगम |
भाई | चंगेज खान |
चाचा | अहमद मिर्जा |
धर्म | इस्लाम |
राजवंश | तिमुरिड (तैमूर वंश) |
जीवनी | बाबरनामा (चगताई भाषा) |
उपाधि | पादशाह, कलंदर, गाजी, हजरत-फिरदौस-मकानी, जीवनी लेखकों का राजकुमार, मालियों का मुकुट (राजकुमार) |
संस्थापक | मुगल वंश का संस्थापक |
पत्नियाँ | आयेशा सुलतान बेगम, जैनाब सुलतान बेगम, मौसमा सुलतान बेगम, माहिम बेगम, गुलरुख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफझाई, गुलनार अघाचा। |
पुत्र-पुत्री | हुमायूँ, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिन्दाल मिर्जा, फख-उन-निस्सा, गुलरंग बेगम, गुलबदन बेगम। |
बाबर का जन्म कब हुआ – Babar Ka Janm Kab Hua Tha
बाबर (Babar ka Janm) का जन्म 14 फरवरी 1483 को उज्बेकिस्तान के फरगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर (ट्रांस ऑक्सियाना प्रांत) में हुआ।
बाबर के पिता का नाम (Babar ke Pita ka Naam) उमर शेख मिर्जा था, जो फरगना की जागीर का मालिक था तथा उसकी माता का नाम कुतलुग निगार खानम था।
बाबर (babra) पितृ पक्ष की ओर से तैमूर का पाँचवां वंशज तथा मातृ पक्ष की ओर से चंगेज खाँ का चौदहवाँ वंशज था। इस प्रकार उसमें तुर्कों एवं मंगोलों दोनों के रक्त का सम्मिश्रण था। बाबर की मातृभाषा चगताई भाषा थी। उस समय फरगना में लोगों द्वारा फारसी भाषा अधिक बोली जाती थी। बाद में बाबर फारसी भाषा में भी प्रवीण हो गया था।
बाबर का वैवाहिक जीवन –
मुगल बादशाह बाबर ने कुल 11 शादियां की थी। बाबर की कुल 11 पत्नियां थी और उसके कुल 20 बच्चे थे। आयशा सुल्तान बेगम, जैनाब सुल्तान बेगम, मौसम सुल्तान बेगम, माहिम बेगम, गुलरूख बेगम, दिलदार बेगम, मुबारका युरुफजई और गुलनार अघाचा उसकी बेगमें थी। माहम बेगम (Babar ki Patni ka Naam) के पुत्र हूमायूं थे (Babar ka Beta kon tha), जो आगे चलकर भारत का शासक बना था। बाबर ने हुमायूं को ही मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाया था।
बाबर के कितने बेटे थे – Babar ke Kitne Putra The
बाबर के 7 बच्चे थे। बाबर के चार बेटे थे।
- हुमायूँ
- कामरान मिर्जा
- अस्करी मिर्जा
- हिन्दाल मिर्जा।
बाबर की तीन बेटियाँ थी।
- फख-उन-निस्सा
- गुलरंग बेगम
- गुलबदन बेगम
बाबर का इतिहास – Babar History in Hindi
फरगना की राजधानी ’अन्दिजान’ थी। कालान्तर में उमर शेख मिर्जा ने यहां से राजधानी हटाकर अख्मीकित (अख्सी) में स्थापित की। एक दिन उमर शेख मिर्जा अपने कबूतरों की उङान का मजा ले रहा था तो उसके ऊपर मकान गिर गया और 8 जून 1494 को तुरन्त ही उसकी मृत्यु हो गई। अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद बाबर 11 वर्ष 4 माह की अल्पायु में 8 जून 1494 ई. में फरगना की गद्दी पर बैठा था। दादी आईशां दौलत बेगम ने बाबर की प्रारम्भिक समस्याओं को समाप्त करके उसका राज्याभिषेक किया था।
बाबर कहता है कि ’’मेरे अधिकांश कार्य मेरी दादी की सलाह के अधीन सम्पन्न हुए।’’ बाबर को अपने चाचा अहमद मिर्जा से खतरा था। अहमद मिर्जा समरकन्द का शासक था और इस अहमद मिर्जा की सहायता से बाबर का मामा सुल्तान महमूद खाँ कर रहा था। फरगना के राजा के रूप में 1494 से 1502 के बीच मे उसे अपने चाचा अहमद मिर्जा के आक्रमण का सामना करना पङा।
बाबर महत्त्वाकांक्षी था। वह तैमूर की राजधानी समरकन्द पर अधिकार करना चाहता था। इसे हेतु उसने 3 बार प्रयास किया था। उसके दिल में अपने पूर्वज के राजसिंहासन पर बैठने की बङी कामना थी। बाबर ने 15 वर्ष की उम्र में 1496 ई. में पहली बार समरकन्द पर आक्रमण किया। एक वर्ष बाद 1497 ई. में पुनः प्रयास करता है इस बार उसे सफलता मिलती है।
1501 ई. में 8 माह बाद समरकन्द पर बाबर ने अधिकार कर लिया। परन्तु शीघ्र ही दोनों बार समरकन्द उसे हाथ से फिसल गया जिसका कारण उजवेग नेता शैबानी खाँ था। उसने समरकंद के शासक बैसंकर मिर्जा की मदद की और 1502 ई. सरेपुल के युद्ध में तुलगमा समर पद्धति की मदद से बाबर को हरा दिया।
इसी समय फरगना में बाबर के सौतेल भाई जहाँगीर मिर्जा को शासक बना दिया गया। अतः समरकन्द तो बाबर के हाथ से निकला ही साथ ही फरगना भी चला गया। अतः अब बाबर राज्यविहीन हो गया। बाबर के पास अब खोजन्द नामक एक पहाङी प्रदेश के अतिरिक्त कोई राज्य नहीं रहा।
काबुल का बादशाह – Babar Ka Itihas
काबुल पर इस समय मुकीम अरबों का अधिकार था। जिसने बाबर के चाचा उलुग वेग मिर्जा के बेटे अब्दूईजाक को वहाँ से भागकर निकाल दिया था। 1504 ई. में बाबर बिना किसी लङाई व प्रयत्न के काबुल और गजनी तथा इसके अन्तर्गत अन्य जिलों पर भी अधिकार कर लिया। 1507 ई. में बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा प्रयुक्त ’मिर्जा’ की उपाधि त्यागकर ’बादशाह अथवा सम्राट’ की उपाधि धारण की। इसी वर्ष उसने गांधार को भी जीता।
1508 ई. में बाबर की तीसरी पत्नी माहिम बेगम के गर्भ से उसके बङे पुत्र हुमायुँ का जन्म हुआ। 1510 ई. के अन्तिम दिनों में बाबर को उजवेग नेता शैबानी खाँ का ईरान के बादशाह इस्माइल सफवी से मर्व की लङाई में हारने तथा मारे जाने का समाचार प्राप्त हुआ। तब बाबर ने 1511-12 ई. में ईरान के शासक शाह इस्माइल से संधि कर ली तथा उसकी सहायता से बाबर ने 1511 ई. में समरकन्द पर अधिकार कर लिया। इसके साथ-साथ उसने बुखारा और खुरासान पर भी अधिकार कर लिया।
अब बाबर के राज्य में ताशकन्द, कुन्दुज, हिसार, समरकन्द, बुखारा, फरगना, काबुल और गजनी के प्रदेश शामिल थे। इसी दौर में बाबर ने कुछ समय के लिए शिया धर्म स्वीकार कर लिया जिसकी पुष्टि उसके सिक्कों पर उत्कीर्ण शिया मंत्रों से की जाती है। उसने किजील बाश (ईरानी पोशाक) धारण की। 1512 ई. में उजबेग नेता उव्बेदूल्ला माहिम खां से कुल-ए-मालिक नामक स्थान पर बाबर की मुठभेङ हुई, बाबर हार गया उसे समरकन्द से हटना पङा।
समरकन्द को उसने तीन बार प्राप्त किया और तीनों बार हाथ से निकल गया। अंत में इसने समरकन्द राज्य पर आक्रमण करना त्याग दिया। बाबर ने उजवेगों से तुलगमा पद्धति का प्रयोग सीखा, ईरानियों से बन्दूक का प्रयोग, अपने सजातीय तुर्कों से गतिशील अश्वरोहिणी सेना का सफल संचालन सीखा। 1514 और 1519 के बीच बाबर को उस्ताद अली नामक एक तुर्क टोपची की सेवाएँ उपलब्ध हुई। कुछ वर्षों बाद उसे मुस्तफा नामक एक तुर्क तोप विशेषज्ञ की सेवाएँ प्राप्त हो गयी। इन दोनों की देखरेख में बाबर ने अनेक तोपें और बन्दूकें तैयार करवाई।
बाबर भारत में कब आया था – Babar Bharat Kab Aaya Tha
1503 ई. में अपने घुमक्कङ जीवनकाल के दौरान ’दिखावट’ नामक गांव के मुखिया की 111 वर्षीय माता से बाबर ने तैमूर के भारत आक्रमण की कथा सुनी। बाबर ने संकल्प लिया कि वह भारत को अवश्य विजयी करेगा जब वह काबुल का राजा था। उसने भारत भूमि पर 4 आक्रमण किये थे। ये अभियान शत्रु की स्थिति और शक्ति को समझने के उद्देश्य से किये गये थे। भारत पर बाबर के आक्रमण का प्रमुख कारण एक बङे साम्राज्य की स्थापना करना था।
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति – Babar in Hindi
इस समय भारत की राजनीतिक स्थिति विकेन्द्रित थी जो किसी भी आक्रमणकारी के लिए उपयुक्त परिस्थिति होती है। उस समय भारत के राजा एक दूसरे से लङने में व्यस्त थे। इस स्थिति का बाबर ने फायदा उठाया था। इस समय बंगाल का समकालीन शासक नुसरतशाह एवं मालवा का महमूदशाह द्वितीय था। गुजरात में मुजफ्फरशाह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् 1526 में बहादुरशाह शासक बना। उस समय दिल्ली का शासक इब्राहिम लोदी था। इब्राहिम लोदी ने बहुत सी लङाईयाँ लङी और वह लगातार उन लङाईयाँ में हारता रहा।
इब्राहिम लोदी इसी समय एक केन्द्रीकृत साम्राज्य बनाने की कोशिश कर रहा था। उसकी असफलता से इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खान बहुत चिंतित थे, क्योंकि वे दिल्ली के सल्तनत पर एक छत्र राज करना चाहते थे, इस समय पंजाब के गवर्नर दौलत खान को इब्राहिम लोदी का कार्य पसंद नहीं आ रहा था। उसके इस प्रयास का कुछ अफगानों एवं मेवाङ के राणा सांगा ने विरोध किया। आलम खाँ की मदद गुजरात का शासक कर रहा था और कुछ ने तो उसे अलाउद्दीन के नाम से सुल्तान भी घोषित कर दिया था।
दौलत खाँ ने अपने पुत्र दिलावर खाँ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल बाबर (Baabar) के पास भेजा ताकि बाबर दिल्ली से इब्राहिम लोदी को हटाकर आलम खाँ लोदी को शासक बना दे। इसी दिलावर खाँ को बाबर ने खानखाना की उपाधि दी थी। बाबर कहता है कि जब मैं काबुल में था तभी आलम खाँ लोदी आया तथा यहीं सांगा का भी दूत आकर उससे मिला।’’ दौलत खाँ लोदी और इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खां ने मुगल सम्राट बाबर (Mughal Samrat Babar) को भारत आने का निमंत्रण भेजा। बाबर को यह सुअवसर लगा क्योंकि यह बाबर के लिए दिल्ली आकर अपने साम्राज्य को बढ़ाने का अवसर था।
बाबर का भारत पर पहला आक्रमण – About Babar in Hindi
बाबर ने भारत पर कुल 5 अभियान किये थे।
बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 ई. में बाजौर पर किया था, बाबर ने यहाँ कत्लेआम की आज्ञा दी। ताकि आस-पास भय छा जाये। बाजौर दुर्ग पर उसने अधिकार कर लिया। यहाँ से वह झेलम के तटवर्ती भेरा नामक स्थान की ओर बढ़ा और अधिकार कर लिया। बाबरनामा में इस घटना का उल्लेख मिलता है। इस युद्ध में बाबर ने पहली बार बारूद और तोपखाने का इस्तेमाल किया था। भेरा को हिन्दूवेग के उत्तरदायित्व में छोङ वह काबूर चला गया। यह अभियान महत्त्व का सिद्ध न हो पाया। क्योंकि बाबर के जाते ही वहां की जनता ने हिन्दूवेग को भाग दिया।
Information On Babur
बाबर का भारत पर द्वितीय आक्रमण
सितम्बर 1519 ई. को बाबर ने भारत की ओर पुनः अभियान किया। वह खैबर दर्रे से आगे बढ़ा जिससे कि वह युसूफजाई अफगानों को अपने अधीन कर सके। इसके बाद उसने पेशावर की किलेबन्दी की और रसद-संग्रह से सम्पन्न बनाया। ताकि इसका उपयोग भारत के विरुद्ध आगामी कार्यवाहियों में कर सके। किन्तु इस लक्ष्य की पूर्ति किये बिना ही उसे काबुल लौटा पङा। क्योंकि बदख्शा से उपद्रवों की सूचना उसे प्राप्त हुई।
बाबर कौन था – Babar Kaun Tha
बाबर का भारत पर तीसरा आक्रमण
1520 ई. में बाबर ने भारत पर आक्रमण के लिए तीसरा अभियान किया। बैजोर तथा भेरा नगर को पुनः अधिकृत कर लिया। वह सियालकोट की और बढ़ा। इस नगर ने बिना प्रतिरोध के बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली। सैमदपुर की जनता ने स्वेच्छा से अधीन होना पसंद नहीं किया। अतः उन्हें बलपूर्वक पराधीन बनाया गया।
इसी बीच बाबर को कंधार से उपद्रव की सूचना मिली। जहां शाहवेग अरगों द्वारा अशांति की सूचना प्राप्त हुई। आगामी 2 वर्ष तक वह शाहवेग के विरुद्ध कार्यवाही करने में व्यस्त रहा। 1522 ई. में कंधार के सूबेदार अब्दुल बकी के छलपूर्वक सहयोग से कंधार दुर्ग को जीतने में सफलता प्राप्त की।
Babar Ki Kahani
बाबर का चौथा आक्रमण
जब बाबर ने कंधार का अभेद दुर्ग जीत लिया। इसी समय उसे पंजाब के गवर्नर दौलत खाँ लोदी का निमंत्रण प्राप्त हुआ। दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी व दौलत खाँ के बीच में अनबन थी। पंजाब का स्वतन्त्र शासक बनने की आशा में उसने बाबर को अपना सम्राट मानने को स्वीकार किया। 1524 ई. में बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और शक्तिशाली सेना लेकर लाहौर की चल पङा। लगभग इसी समय इब्राहीम लोदी ने दौलत खाँ लोदी को दबाने के लिए एक सेना भेजी। जिसमें उसे सफलता प्राप्त हुई। दौलत खाँ लोदी पराजित हुआ है और उसे निर्वासित होना पङा।
History of Babar in Hindi Language
जब मुगल बादशाह बाबर (Mughal Badshah Babar) लाहौर के निकट पहुँच गया तो दिल्ली ने आक्रमणकारी का मार्ग अवरुद्ध करने का यत्न किया। बाबर ने आक्रमण करके सेनाओं को छीनबीन कर दिया। इसके बाद लाहौर को अधिकृत किया। बहुत से कस्बों को लूटा और जला दिया गया। इसके बाद दिपालपुर की ओर बढ़ा और उसे ध्वंस करते हुए दुर्गरक्षकों को तलवार के घाट उतारते हुए दिपालपुर पर अधिकार कर लिया।
दिपालपुर में दौलत खां ने सम्राट बाबर (Samrat Babar) का साथ दिया था। दौलत खां ने आशा की थी संपूर्ण पंजाब प्रान्त उसे वापस प्राप्त हो जायेगे। किन्तु बाबर ने ऐसा न करते हुए पंजाब को अपने अधिकार में ही रखा और दौलत खाँ को जलंधर व सुल्तानपुर के दो जिले सौंप दिए। दौलत खाँ को निराशा हुई उसने सैन्य विभाजन के लिए बाबर को छलपूर्वक सलाह दी।
दौलत खाँ के पुत्र दिलावर खाँ ने अपने पिता की स्वार्थपूर्वक विद्रोहात्मक योजना का रहस्यो-उद्घाटन बाबर के सामने कर दिया। उसके बाद बाबर ने सुल्तानपुर दिलावर खाँ को और जलंधर दौलत खाँ के हाथों में बना रहने दिया। आलम खाँ इब्राहीम लोदी का चाचा था। जो दिल्ली राजसिंहासन का उम्मीदवार था। वह अपने भतीजे इब्राहीम लोदी के विरुद्ध बाबर की सहायता चाहता था। इन व्यवस्थाओं से निश्चित होकर बाबर दिपालपुर और लाहौर में अपने दुर्गरक्षक छोङकर काबुल चला गया।
जैसे ही बाबर वहाँ से चला गया तो दौलत खाँ ने अपने पुत्र दिलावर खाँ पर आक्रमण कर दिया और सुल्तानपुर हङप लिया। बाद में दिपालपुर की ओर बढ़ा। यहाँ आलम खाँ को मार भगाया। उसने पूरे पंजाब को पुनः अधिकृत करने का प्रयत्न किया। परन्तु सियालकोट के दुर्गरक्षकों ने उसे हरा दिया।
उजवेगों के विद्रोह करने के बाद नवम्बर 1525 को बाबर भारत देश की ओर बढ़ा। बदख्शा से अपनी सेना लेकर हुमायुँ भी उससे आकर मिला। दौलत खाँ और गाजी खाँ भय से कांप उठे और मिलावत के दुर्ग में छिपकर बैठ गये बाबर ने तुरन्त उस दुर्ग को घेर लिया। दौलत खाँ को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया।
बाबर ने हुक्म दिया कि ’’जिन दो तलवारों को कमर कें बांधकर दौलत खाँ मुझसे लङने के लिए तैयार हुआ। उन्हीं तलवार को गर्दन में लटकाये हुए मेरे सामने उपस्थिति हो।’’ जैसे ही दौलत खाँ ने बाबर के सामने झुकने के लिए विलंबन किया। बाबर ने आज्ञा दी कि ’’उसकी टांगें खींच ली जाये जिससे वह झुक जाये और अपने विद्रोही व्यवहार के लिए लज्जित हो।’’ इसके पश्चात् उसे भेरा नगर में बंदी बनाकर भेज दिया गया वहां मार्ग में जाते हुए दौलत खाँ की मृत्यु हो जाती है।
लगभग इसी समय अलप खाँ अपनी दया दशा में बाबर की शरण में आता है। सम्भवतया अब दूसरा कदम इब्राहीम लोदी से संघर्ष करने का था। पंजाब की विजय की अपेक्षा यह कार्य कठिन था। सम्भवतया इसी समय चित्तौङ के राणा सांगा ने इब्राहिम पर सम्मिलित आक्रमण करने का प्रस्ताव भेजा था। जब आक्रमणकारी की इच्छा स्पष्ट प्रतीत हो गयी तो इब्राहीम लोदी ने एक विशाल सेना एकीकृत की और वह पंजाब की ओर उससे युद्ध करने के लिए चल पङा। साथ में दो प्रमुख दस्ते उसने हिसार की ओर भेज दिये।
बाबर के युद्ध – Babar Ke Yudh
पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526)
कुछ दूर ओर बढ़ने के बाद बाबर पानीपत (हरियाणा) पहुँच गया वहाँ उसने अपना शिविर डाल दिया। बाबर ने अपने आत्मचरित्र ’बाबरनामा’ में गर्व के साथ लिखा है कि ’’उसने इब्राहीम लोदी को केवल 12 हजार सैनिकों की सहायता से परास्त किया।’’ वह इब्राहीम लोदी के सैनिकों की संख्या 1 लाख बताता है।
युद्ध नीति की व्यूह-रचना –
बाबर ने 700 गतिशील गाङियों जिसे ’अराबा’ कहा जाता था। 700 गतिशील गाङियों की पंक्ति को गीली खाल की रशों से आपस में बांधकर अपनी सेना की रक्षा के लिए फौज के आगे खङा कर दिया। गाङियों के बीच में उसने काफी रास्ता छोङ रखा था। जिसमें सैनिक आसानी से निकलकर आक्रमण कर सकते थे। उस्ताद अली सेना के दायीं ओर मुस्तफा खां बायीं ओर तैनात थे।
तोपखाने के पीछे उसके अग्रगामी रक्षकों का जमाव था। इसके पीछे सेना का केन्द्र-स्थल ’गुल’ था जहाँ बाबर स्वयं संचालन के रूप में उपस्थित था। सेना के बायें अंग में कुछ दूर तुलगमा नियुक्त किया गया तथा दायीं ओर कुछ दूर दूसरा तुलगमा नियुक्त किया गया था।
बाबर के कथानुसार इब्राहीम लोदी की सेना में 1 लाख सैनिक व 1 हजार हाथी थे। इस सेना में ऐसे भी दस्ते थे जिनका संगठन समय की आवश्यकता से शीघ्रता से कर लिया था।
ये दस्ते प्रचलित चार खण्डों में विभाजित थे
(1) अग्रगामी दस्ता (अग्रगामी रक्षक-दल)
(2) केन्द्रीय दल
(3) दाहिना दल
(4) बायां दल
12 अप्रैल 1526 ई. को दोनों ओर की सेना आमने-सामने आकर खङी हो गयी किन्तु किसी ने भी आक्रमण का श्रीगणेश नहीं किया। 20 अप्रैल को बाबर ने अपने 4 से 5 हजार सैनिकों को आक्रमण करने के लिए अफगान शिविर की ओर भेजा किन्तु कोई सफलता नहीं मिली। इस घटना ने इब्राहीम लोदी को अगले प्रातःकाल की पलटन बढ़ाने के लिए प्रेरित कर दिया।
21 अप्रैल 1526 ई. को दोनों पक्षों में युद्ध छिङ गया। इब्राहीम लोदी ने अपनी सेना को तीव्र गति से आगे बढ़ने का आदेश दिया। किन्तु बाबर की दुर्ग-समान रक्षात्मक पंक्तियों के निकट अकस्मात् ठहर जाना पङा। अफगान सेना में भगदङ मच गयी। अवसर को अपने हित में देखकर बाबर ने किलेबन्दी वाली तुलगमा सेनाओं को तुरंत घूमकर पीछे से आक्रमण की आज्ञा दी।
उधर इब्राहीम ने अपनी फौज को बाबर की सेना के बायें अंड पर आक्रमण करने की आज्ञा दी जिससे वह घेराव में आ गये। अब बाबर ने तुरन्त अपने केन्द्र से कोतल सेना (रिजर्व सेना) भेजी, जो अफगान खंड के दायनें खण्ड को खदेङ में सफल रही। इस समय तक दोनों सेनाओं के सभी दस्ते युद्ध में भाग लेने लगे गये थे। बाबर ने अपने तोपचियों को आग बरसाने की आज्ञा दे दी। इस प्रकार इब्राहीम लोदी की सेना घेर ली गई उसके सामने तोपखाने के गोले की वर्षा हो रही थी। पीछे तथा दायें-बायें से तीरों की बौछार हो रही थी। प्रातःकाल से दोपहर तक युद्ध चलता रहा।
इब्राहीम लोदी अन्त समय तक बहादुरी से लङता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ और उसके 15 हजार सैनिक युद्ध में मारे गये। पानीपत के प्रथम युद्ध में विजयी के उपलक्ष्य में बाबर ने काबुल निवासियों को एक-एक चांदी के सिक्के दिये थे और इस उदारता के लिए उसे ’कलंदर’ की उपाधि दी गई थी।
Babar Ka Itihas Hindi Me
खानवा का युद्ध (16-17 मार्च 1527 ई.)
जब बाबर काबुल में था तब कहा जाता है कि राणा सांगा का उसके साथ यह समझौता हुआ था कि महाराणा सांगा इब्राहीम लोदी पर आगरा की ओर से आक्रमण करेगा और बाबर उत्तर की ओर से। जब बाबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया था तो राणा सांगा ने बाबर पर अविश्वसनीय का आरोप लगाया उधर राणा सांगा ने बाबर पर आरोप लगाया कि बाबर ने काल्पी, धौलपुर और बयाना पर अधिकार कर लिया। परन्तु समझौते की शर्तें के अनुसार यह सत्ता सांगा को मिलनी चाहिए थी। किन्तु इन दोनों में यही मुख्य कारण नहीं कहा जा सकता राणा सांगा ने सोचा था कि बाबर अपने पूर्वज तैमूर तथा अन्य आक्रमणकारियों की भाँति देश का माल लूटकर वापस चला जायेगा परन्तु उसने देखा कि इस मुगल शासक ने देश में ठहरकर राज्य कराना निश्चित कर लिया है।
इस खतरे से वह सचेत हो गया सांगा एक विख्याती प्राप्त योद्धा था। उसकी बहादुरी के कारनामों से सारे देश परिचित थे। कहा जाता है कि सात राजपूत राजा और 104 सरदारों की सम्मिलित सेना के साथ उसने बयाना पर दावा बोल दिया वहाँ के गवर्नर महेंदीख्वाजा को हरा दिया।
अब राणा सांगा के साथ बहुत से शक्तिशाली सरदार हो गये जिसमें रायसिंह का सिलहवी व हसन खाँ मेवाती तथा स्व-सुल्तान इब्राहीम लोदी का भाई मुहम्मद लोदी भी शामिल था। राणा सांगा ने मुहम्मद लोदी को दिल्ली का सुल्तान मान लिया। बयाना के दुर्गरक्षकों से मुठभेङ करने में मुगल सेना असमर्थ रही और भयभीत होकर भाग खङी हुई, वापस लौटकर इन सैनिकों ने राजपूत के अपार शौर्य, साहस तथा वीरता के किस्से बाबर को सुनाये। इस समय बाबर फतेहपुर सीकरी पहुँच चुका था उसने 1500 सैनिकों का एक दल सांगा की स्थिति का निरीक्षण करने के लिए भेज दिया। ये लोग बुरी तरह पराजित हुए। मार-काटकर वहाँ से खदेङ दिये गये अब युद्ध होना निश्चित हो गया।
राणा सांगा पहले ही खानवा के निकट एक पहाङी तक बढ़ गया। जो वर्तमान भरतपुर राज्य का एक गांव और आगरा के पश्चिम में 37 मील दूरी पर फतेहपुर सीकरी से 10 मील की दूरी पर स्थित है। बाबर की सेना घराब गई और राजपूतों के पराक्रम तथा इसकी बहादुरी से भयभीत होने लगी। काबुल के एक ज्योतिषी ने इस बार बाबर की पराजय की भविष्यवाणी की थी। इससे मुगल सेना और भी भयभीत हुई इस विकट परिस्थिति में बाबर धैर्य का सहारा लेते हुए बाबर ने खानवा युद्ध के समय अपने सैनिकों के मनोबल को ऊँचा रखने के लिए ’जिहाद’ (धर्मयुद्ध) का नारा दिया।
साथ ही जीवनभर शराब न पीने की कसम खाई इसके साथ मुसलमानों पर ’तमगा’ (एक प्रकार का सीमा कर) कर उठा लिया। अब बाबर खानवा पहुँच चुका था राणा सांगा वहाँ पहले से ही पहुँच चुका था। दोनों ओर की सेना वहाँ पर आ डटी। बाबर के अनुसार राजपूती सेना में 2 लाख सैनिक थे। लेकिन असली योद्धा 80 हजार से अधिक नहीं थे।
व्यूह -रचना –
बाबर ने अपनी सेना की व्यूह-रचना पानीपत के ढंग से ही की थी। सामने के मोर्चे पर बिना बैल के बैलगाङी थी, जो आपस में लोहे की जंजीरों से बंधी हुई थी। बाबर ने अपना स्थान मध्य में स्थित किया। हुमायूँ ने दिलावर खाँ और अन्य हिन्दुस्तानी नवाबों को लेकर दाहिने पक्ष को संभाला। महेंदीख्वाजा ने बायें पक्ष का काम अपने हाथों में लिया। गाङियों के कतार के पीछे तोपखाने की एक पंक्ति खङी कर दी थी। इसकी कमान निजामुद्दीन खलीफा के हाथ में थी।
राणा सांगा की सेनाएँ चार प्रचलित खण्डों में विभाजित की गई थी –
- आगामी रक्षक दल
- मध्य पक्ष
- दाहिना पक्ष
- बायां पक्ष।
युद्ध प्रारम्भ –
16-17 मार्च 1527 ई. को प्रातः 9 बजे युद्ध प्रारम्भ हुआ। मुगलों के दल को दाहिनी ओर से खदेङने के लिए राणा सांगा ने अपने बायें पक्ष को आक्रमण करने की आज्ञा दी। दाहिने तुलगमा पर प्रहार का ऐसा आघात हुआ कि वह छीनबीन हो गई।
बाबर ने चिन्तैमूर को उसकी सहायता के लिए भेजा। बाबर ने बायें पक्ष पर आक्रमण किया। मुगल सैनिक उनकी टुकङियों में खलबली पैदा करते हुए भीतर तक पहुँच गये। इसी समय मुस्तफा को खुले में सिपाहियों को बढ़ाने तथा आग बरसाने का मौका मिला। तोपखाने ने अपना सन्तोष कायम रखा।
मुगलों का साहस सजीव हो उठा। मुगल तोपखाने द्वारा भयंकर आग बरसाने पर भी वीर राजपूत ने अपने निरन्तर आक्रमणों से बाबर के साथियों के दम फूला दिये थे। उस्ताद अली को इस अवसर पर जी (मन) तोङकर प्रयत्न करने की आज्ञा मिली। आक्रमण की यह चाल सफल सिद्ध हुई। अंतिम आक्रमण में बाबर की निजी अश्वरोही सेना तथा अग्निवर्षा के एक साथ प्रहार से राजपूत सेना का प्रहार टूटने लगा। राजपूत अब बिखर गये। बाबर जो विजय की ओर से निराशा हो चुका था। युद्ध में विजयी हुआ। राणा सांगा हार गया। 1527 ई. में खानवा युद्ध के पश्चात् बाबर ने ’गाजी’ की उपाधि धारण की थी।
चंदेरी का युद्ध – Babar Ki Ladai
मालवा और बुन्देलखण्ड की सीमा पर स्थित चन्देरी सामरिक महत्त्व की जगह थी। उत्तरी मालवा मार्ग चन्देरी के गढ़ के नीचे होने से चंदेरी का व्यापारिक महत्त्व था। चंदेरी पर इस समय मेदिनीराय का अधिकार था। खानवा युद्ध में मेदिनीराय ने राणा सांगा की ओर से युद्ध में भाग लिया था। बाबर चंदेरी पर अब अधिकार करना चाहता था। क्योंकि चंदेरी पर अधिकार हो जाने से वह गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र पर दृष्टि रख सकता है।
खानवा की विजय के बाद बाबर ने अप्रैल 1527 में मेवात पर आक्रमण कर अलवर पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् जनवरी 1528 में चंदेरी की तरफ रवाना हुआ। चंदेरी पहुँचकर बाबर ने मेदिनीराय से चंदेरी सौंप देने की मांग की। किन्तु मेदिनीराय द्वारा अस्वीकृति भेजने पर 28 जनवरी 1528 को बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण कर दिया। स्थानीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए भी ’जिहाद’ (धर्मयुद्ध) का बाना पहना दिया।
राजपूत मुगल सैनिकों के विरुद्ध अधिक नहीं टिक सके तो राजपूतों ने अपनी स्त्रियों को मौत के घाट उतार दिया और स्वयं मुगलों से युद्ध कर मर मिटे। चंदेरी पर बाबर का अधिकार हो गया। मेदिनीराय की दो कन्याएँ जो मुगल के अधिकार में आ चुकी थी। एक को कामरान तथा दूसरी हुमायूँ को नजर की गई।
घाघरा का युद्ध –
पानीपत में पराजित अफगान अब भी बाबर के लिए सिरदर्द बने हुए थे। वे बिहार में एकीकृत होकर अपने शक्ति संगठित कर रहे थे। इब्राहीम लोदी का भाई मुहम्मद लोदी इन अफगानों का नेतृत्व कर रहा था। 20 फरवरी 1529 को बाबर ने अफगानों के विरुद्ध प्रस्थान किया। गाजीपुर पहुँचने पर कुछ अफगान अपनी अधीनता प्रकट करने हेतु उसकी सेवा में उपस्थित हो गये और कुछ अफगानों ने अपनी अधीनता के पत्र भेजे। बाबर ने बंगाल के शासक नसरत शाह को भी समझौते हेतु पत्र भेजे। लेकिन इनका कोई परिणाम नहीं निकाला, इसके विपरीत नसरतशाह के दामाद मखदूमे आलक के नेतृत्व में अफगानों ने गण्डक नदी के किनारे अपनी सेनाएँ तैनात कर दी।
मई 1529 ई. में बाबर ने गंगा नदी पार की और 4 मई को मुगल सेना ने घाघरा नदी को पार करने का प्रयत्न किया। यहाँ बाबर और अफगानों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। बाबर ने गोलाबारी की सहायता से नदी पार करने ली। 6 मई को अफगानों में भगदङ मच गई और उन्हें परास्त होना पङा। नसरतशाह ने बाबर की प्रभुत्ता को स्वीकार करते हुए विद्रोहियों को शरण न देने का वचन दिया। घाघरा का युद्ध बाबर ने जीवन का अंतिम युद्ध था। इस युद्ध के बाद बाबर सिन्धु नदी से बिहार तक तथा हिमालय से चंदेरी तक का शासक बन गया। इस युद्ध के बाद बाबर और उसकी सेना ने भारत के राज्यों को लूटना शुरू किया।
बाबर की क्रूरता –
भारत को जीतने के बाद बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उसके बाद बाबर की सेना ने लूटपाट करना शुरू कर दिया। देश के कई राज्यों में काफी लूटपाट मचाई गई और उन्हें लूटा गया। बाबर अपने साम्राज्य विस्तार में इतना अंधा हो गया कि उसने काफी हद तक क्रूरता दिखाई और खूब नरसंहार किया। बाबर की क्रूरता आज भी इतिहास में प्रमाणित मिलती है। बाबर का स्वभाव अइयाश किस्म का था, उसने किसी भी धर्म का न तो सम्मान किया और न ही वह किसी धर्म पर विश्वास करता था यही कारण है कि उसने कभी भी भारत के लोगों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित होने के लिए दवाब नहीं डाला था।
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना – Babar Badshah History in Hindi
बाबर ने भारत पर कुल 5 बार आक्रमण किया था। 1526 को पानीपत के प्रथम युद्ध में ही बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी। मुगल वंश ने लगभग 300 वर्ष से अधिक समय तक भारत में शासन किया था। बाबर ने अपने जीवनकाल की सभी बातें जगताई भाषा में लिखित अपनी आत्मचरित्र ’बाबरनामा’ में वर्णित की है। भारत में मुगल शासन के संस्थापक बाबर है।
बाबर की स्थापत्य कला
बाबर ने भारत में फारसी कला का विस्तार किया है। बाबर ने पानीपत मस्जिद, जमा मस्जिद, बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया है। बाबर बागों को लगाने का बङा शौकीन था। उसने आगरा में ज्यामितीय विधि से एक बाग लगवाया, जिसे ’नूरे-अफगान’ कहा जाता था। परन्तु अब इसे ’आराम बाग’ कहा जाता है। बाबर ने सङकों को नापने के लिए ’गज-ए-बाबरी’ नामक माप का प्रयोग किया, जो कालान्तर तक चलता रहा।
बाबर की आत्मकथा का अनुवाद ’अब्दुर्रहीम खानखाना’ ने फारसी और श्रीमती बेबरिज ने अंग्रेजी में किया। एलफिंस्टन ने उसकी आत्मकथा के बारे में लिखा है कि- ’’वास्तविक इतिहास का वह एशिया में पाया जाने वाला अकेला ग्रन्थ है।’’ बाबर ने एक काव्य-संग्रह ’दीवान’ (तुर्की भाषा) का संकलन करवाया। बाबर ने ’मुबइयान’ नामक एक पद्य शैली का विकास किया। उसने ’रिसाल-ए-उसज’ की रचना की जिसे ’खत-ए-बाबरी’ भी कहा जाता है।
बाबर की उपाधि
- हजरत-फिरदौस-मकानी
- जीवनी लेखकों का राजकुमार
- मालियों का मुकुट (राजकुमार)
- उपवनों का राजकुमार
- मिर्जा – बाबर के पिता ने उसको ’मिर्जा’ की उपाधि प्रदान की थी।
- गाजी – 1527 ई. में खानवा युद्ध के पश्चात् बाबर ने ’गाजी’ उपाधि धारण की थी।
- कलन्दर – बाबर ने अत्यधिक मात्रा में धन का वितरण किया था, इसी कारण उसे ’कलन्दर’ (Kalandar ki Upadhi) कहा गया।
- खाकान – 1526 में बाबर ने स्वयं को ’खाकान’ कहा था और उसने मंगोलों का यह लकब धारण किया था।
- पादशाह (बादशाह) – बाबर ने 1504 में काबुल पर अधिकार कर लिया और परिणामस्वरूप उसने 1507 में ’पादशाह’ (बादशाह) की उपाधि धारण थी। बादशाह की उपाधि धारण करने से पूर्व बाबर की उपाधि मिर्जा थी।
बाबर के अंतिम दिन – Babar Ki Mrityu Kab Hui Thi
घाघरा के बाद बाबर को किसी बात की चिंता न रही लेकिन उसके भाग्य में सुख नहीं लिखा था। 1528 ई. से ही उसका स्वास्थ्य गिर गया। अत्यधिक भांग, अफीम, मदिरा व असंख्य औषधियों के सेवन से उसका शरीर छनछनी हो चुका था। कुछ समय पश्चात् हुमायूँ रोगग्रस्त हो गया। हुमायूँ के रोगग्रस्त होने पर उसने ईश्वर से प्रदान की थी कि हुमायूँ को रोगमुक्त कर दे और उसके बदले में उसका स्वयं का प्राणदान स्वीकार किया जाए।
हुमायूँ के ठीक होने पर उसे विश्वास हो गया कि उसका अन्त निकट है और फिर उसका स्वास्थ्य भी तेजी से गिरने लगा अतः उसने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हुमायूं अपने रोगी पिता की सेवा न कर सका 26 दिसम्बर 1530 को बाबर का देहांत हो गया। हुमायूँ उस समय सम्बल में था। अतः बाबर की मृत्यु को गुप्त रखा गया। हुमायूँ के चार दिन बाद पहुँचने पर 30 दिसम्बर 1530 को उसका राज्याभिषेक हुआ। बाबर का मकबरा काबुल में स्थित है।
बाबर से संबंधित कुछ तथ्यात्मक प्रश्न
प्र. 1 बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा का वर्णन कीजिये ?
उत्तर – बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी। उस समय भारत अनेक राज्यों में बँटा हुआ था। देश में राजनैतिक एकता का अभाव था। केन्द्रीय शासन की दुर्बलता के कारण अनेक प्रान्तों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी। दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के कठोर व्यवहार के कारण अनेक अफगान सरदारों ने इब्राहीम लोदी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया जिसके परिणामस्वरूप राज्य में अशान्ति और अराजकता फैल गई थी।
प्र. 2 बाबर के भारत आक्रमण के समय राजपूताना की राजनैतिक स्थिति क्या थी ?
उत्तर – बाबर के आक्रमण के समय मेवाङ का शासक राणा सांगा था। राणा सांगा ने मालवा, गुजरात तथा दिल्ली के सुल्तानों को पराजित करके अपनी सैनिक योग्यता तथा युद्ध-कौशल का परिचय दिया था। राव जोधा ने 1459 में जोधपुर दुर्ग की नींव रखी और जोधपुर नगर बसाया था। उसने कुम्भा की मृत्यु के बाद अजमेर और सांभर पर अधिकार कर लिया। उसके एक पुत्र बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। 1515 में गांगा मारवाङ का शासक बना।
प्र. 4 तुलुगमा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध एवं खानवा के युद्ध में तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया था। इसमें आक्रमणात्मक एवं सुरक्षात्मक युद्ध पद्धतियों का समावेश था। बाबर ने अपनी सेना के दाँये तथा बाँये भाग में तुलुगमा दस्ते नियुक्त किये थे। इसका उद्देश्य शत्रु-सेना में भगदङ उत्पन्न करना था।
प्र. 5 खानवा के युद्ध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – 16 मार्च, 1527 ईस्वी को बाबर और मेवाङ के शासक राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध हुआ। यद्यपि राजपूतों ने मुगलों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया, परन्तु वे अधिक समय तक मुगलों की तोपों का मुकाबला नहीं कर सके और उन्हें पराजय का मुँह देखना पङा। राणा सांगा एक तीर लगने से मूच्र्छित हो गया और उसे घायल अवस्था में युद्ध-क्षेत्र से बाहर ले जाया गया। इस युद्ध में बाबर की विजय हुई।
प्र. 3 भारत पर बाबर के प्रारम्भिक आक्रमणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – भारत पर बाबर के प्रारम्भिक आक्रमण निम्न हैं–
- 1519 ईस्वी में बाबर ने भारत पर प्रथम आक्रमण किया और बाजौर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- सितम्बर, 1519 में बाबर ने भारत पर दूसरा आक्रमण किया, परन्तु उसे शीघ्र ही काबुल लौटना पङा।
- 1520 ईस्वी में बाबर ने सियालकोट और सैयदपुर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- 1524 ईस्वी में बाबर ने भारत पर चौथा आक्रमण किया और लाहौर पर अधिकार कर लिया।
- 1525 ईस्वी में बाबर ने पंजाब पर आक्रमण पर आक्रमण किया और दौलत खाँ लोदी को पराजित कर उसे बन्दी बना लिया।
प्र. 6 ’बाबरनामा’ का एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – बाबर ने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ’बाबरनामा’ की रचना की। ’बाबरनामा’ की भाषा सरल और प्रभावशाली है। इसकी शैली स्पष्ट, प्रवाहमयी और स्वाभाविक है। इस ग्रन्थ से तत्कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
प्र. 8 पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम निम्न हैं–
- पानीपत के युद्ध के परिणामस्वरूप लोदी वंश का अन्त हो गया।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप दिल्ली सल्तनत का भी अन्त हो गया।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
- इस युद्ध से अफगानों की शक्ति को प्रबल आघात पहुँचा।
- पानीपत की विजय से बाबर की शक्ति तथा प्रभाव में वृद्धि हुई।
प्र. 12 बाबर के राजपूतों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – 16 मार्च, 1527 ईस्वी को बाबर तथा राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध हुआ जिसमें राजपूतों की पराजय हुई और उन्हें भीषण क्षति उठानी पङी। चन्देरी के शासक मेदिनीराय ने राणा सांगा की ओर से खानवा के युद्ध में भाग लिया था। अतः 1528 में बाबर ने चन्देरी पर आक्रमण किया। इस युद्ध में मेदिनीराय लङता हुआ वीरगति कोे प्राप्त हो गया और 28 जनवरी, 1528 ईस्वी को चन्देरी के दुर्ग पर बाबर का अधिकार हो गया।
प्र. 9 खानवा के युद्ध के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – खानवा के युद्ध के कारण निम्न हैं–
- बाबर और राणा सांगा ने एक-दूसरे पर वचन-भंग का आरोप लगाया।
- बाबर सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर मुगलों का आधिपत्य स्थापित करना चाहता था।
- इब्राहीम लोदी का भाई महमूद लोदी और अफगान नेता हसन खाँ मेवाती राणा सांगा के पक्ष में जा मिले थे।
- राणा सांगा द्वारा खण्डार दुर्ग और उसके आस-पास के 250 गाँवों पर अधिकार कर लेने से बाबर नाराज था।
प्र. 11 पानीपत के प्रथम युद्ध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – 21 अप्रैल, 1526 को बाबर और इब्राहीम लोदी की सेनाओं के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। शीघ्र ही मुगलों ने इब्राहीम लोदी की सेना को घेर लिया और उन पर तोपों के गोले बरसाए। यद्यपि अफगानों ने मुगल सैनिकों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया, परन्तु अन्त में उन्हें पराजय का मुँह देखना पङा। इब्राहीम लोदी अपने 15 हजार सैनिकों सहित मारा गया। पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर विजयी हुआ।
प्र. 7 पानीपत के प्रथम युद्ध के क्या कारण थे ?
उत्तर – पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण निम्न हैं–
- बाबर भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
- वह भारत की अतुल धन-सम्पत्ति को प्राप्त करना चाहता था।
- बाबर के पास एक शक्तिशाली सेना और तोपखाना था जिससे उसे भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा मिली।
- बाबर के आक्रमण के समय भारत में राजनीतिक स्थिति बङी शोचनीय थी।
- दौलत खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया था।
प्र. 10 खानवा युद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – खानवा युद्ध के परिणाम निम्न हैं–
- खानवा के युद्ध में राजपूतों को भीषण हानि उठानी पङी।
- खानवा के युद्ध में राजपूतों की शक्ति को प्रबल आघात पहुँचा।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत में मुगल साम्राज्य दृढ़तापूर्वक स्थापित हो गया।
- खानवा के युद्ध ने मेवाङ की प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचाया।
- अब बाबर की शक्ति का आकर्षण केन्द्र काबुल से हटकर हिन्दुस्तान हो गया।
बाबर से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Babar Se Sambandhit Question Answer
1. बाबर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर – 14 फरवरी 1483 को उज्बेकिस्तान के फरगना घाटी के अन्दीझ़ान नामक शहर में
2. बाबर के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर – उमर शेख मिर्जा
3. बाबर की माता का नाम क्या था ?
उत्तर – कुतलुगनिगार खानम
4. मुगल काल का प्रथम शासक कौन था ?
उत्तर – बाबर
5. बाबर राजगद्दी पर कब बैठा ?
उत्तर – अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद बाबर 11 वर्ष 4 माह की अल्पायु में 8 जून 1494 ई. में फरगना की गद्दी पर बैठा था।
6. बाबर ने काबुल पर अधिकार कब किया ?
उत्तर – 1504
7. बाबर कहाँ का शासक था ?
उत्तर – फरगना
8. बाबर ने ’बादशाह’ की उपाधि कब धारण की ?
उत्तर – 1507
9. बाबर का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर – जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर
10. भारत पर आक्रमण हेतु किसने बाबर को निमंत्रण भेजा था ?
उत्तर – राणा सांगा, आलम खाँ, दौलत खाँ लोदी ने
11. मुगल वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर – बाबर
12. बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण कब किया था ?
उत्तर – 1519
13. बाबर का शासनकाल कब से कब तक रहा था ?
उत्तर – 1526 ई. से 1530 ई. तक
14. बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली के शासक कौन थे ?
उत्तर – इब्राहीम लोदी
15. पानीपत का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ ?
उत्तर – 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच
16. बाबर ने किस युद्ध के पश्चात् मुगल वंश की स्थापना की थी ?
उत्तर – पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद
17. खानवा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ ?
उत्तर – 16-17 मार्च 1527 ई. को बाबर और राणा सांगा के बीच
18. किस युद्ध में बाबर ने ’जिहाद’ (धर्मयुद्ध) का नारा दिया था ?
उत्तर – खानवा का युद्ध
19. चंदेरी का युद्ध कब और किसके बीच हुआ ?
उत्तर – 28 जनवरी 1528 को बाबर और मेदिनी राय के बीच
20. घाघरा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ ?
उत्तर – 20 फरवरी 1529 को बाबर और अफगानों के बीच
21. बाबर द्वारा लङा गया अंतिम युद्ध कौनसा था ?
उत्तर – घाघरा का युद्ध (1529)
22. किस युद्ध में बाबर ने पहली बार ’तुलुगमा युद्ध नीति’ एवं ’तोपखाना’ का प्रयोग किया था ?
उत्तर – पानीपत के प्रथम युद्ध में
23. बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा की रचना तुर्की भाषा में की। बाद में उसका अनुवाद फारसी में किसने किया ?
उत्तर – अब्दुल रहीम खानखाना
24. मध्यकालीन भारत में किस शासक ने पहली बार तोपों का इस्तेमाल किया था ?
उत्तर – बाबर ने
25. किस मुगल शासक ने मुसलमानों को तमगा नामक कर से मुक्त कर दिया था ?
उत्तर – बाबर
26. पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर के किन दो प्रसिद्ध तोपिचियों ने भाग लिया था ?
उत्तर – उस्ताद अली एवं मुस्तफा अली
27. बाबर का पुत्र कौन था ?
उत्तर – हुमायूं
28. खानवा युद्ध के बाद बाबर ने कौनसी उपाधि धारण की थी ?
उत्तर – गाजी
29. किस मुगल बादशाह को उसकी उदारता के कारण लोग उसे कलंदर पुकारते थे ?
उत्तर – बाबर
30. किस मुगल शासक को उपवनों का राजकुमार और मालियों का मुकुट भी कहा जाता है ?
उत्तर – बाबर
31. बाबर के वंशजों की राजधानी कहां थी?
उत्तर – समरकंद
32. बाबर ने अपनी आत्मकथा किस भाषा में लिखी है ?
उत्तर – बाबर ने अपनी आत्मकथा ’बाबरनामा’ तुर्की भाषा में लिखी है।
33. बाबर ने किस विजय के उपरांत ’पादशाह’ की उपाधि धारण की थी ?
उत्तर – काबुल विजय के बाद
34. बाबर की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
उत्तर – 26 दिसंबर 1530 को आगरा में
35. बाबर का मकबरा कहां स्थित है ?
उत्तर – काबुल
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